नई दिल्ली: “हम दुनियाभर की बोली भाषा पैसे देकर सीख सकते हैंलेकिन अपनी मातृभाषा को अपने दादा-दादीनाना-नानी की गोद में ही सीख सकते हैं. हमें उत्तराखंडी बोली के साथ-साथ वहां के संस्कारखान-पानपहनावा और भाईचारा को भी अपने आने वाले पीढ़ी में जीवित रखना है.” बुराड़ी में चल रहे ‘उत्तराखंडी बोली भाषा‘ के तीन महीने से चल रहे कार्यक्रम के समापन समारोह में यह बात कही विनोद बछेती ने. उन्होंने कहा कि अगले साल गर्मियों में हम फिर से बच्चों के लिए उत्तराखंडी बोली भाषा की कक्षाएं एक नए रंग और प्रारूप में लेकर आयेंगे. इस मौके पर निगम पार्षद अनिल त्यागी ने कहा कि आज के समय में हमारी नई पीढ़ी अपनी बोलीभाषा से दूर होती जा रही हैउनके लिए इस तरह की कक्षाएं खासकर शहरों में बहुत ही जरूरी है. साथ ही बच्चों को आत्मनिर्भरता और आत्मरक्षा की शिक्षा देना भी बहुत आवश्यक है.

कार्यक्रम का संचालन केंद्र प्रमुख गिरीश सत्यवलीअध्यक्ष उत्तराखंड प्रवासी संगठन द्वारा किया गया.  शिक्षिकाओं में  सुनीता सत्यवलीबबीता मनराललीला सत्यवली भी मौजूद थी.  उत्तराखंडी बोली भाषा का ज्ञान ले रहे कालोनी के लगभग 55 बच्चों की  उपस्थिति रहे. बच्चों  ने अपने द्वारा सीखी गई बोली भाषा को भी सबको सुनाया तथा अपनी गायकी व कला से सभी को मंत्रमुग्ध किया. उन्होंने उत्तराखंडी सांस्कृतिक कार्यक्रम और नृत्य कर सभी को अपनी कला का परिचय दिया. समापन समारोह में सर्वेश ठाकुरहरीश भारद्वाजडाक्टर भारत सत्यवलीबाला दत्त जोशीनरेंद्र सिंह रौतेलाविनोद सत्यवलीभूवन पपनोई,  देवेन्द्र कुमारगुलाब शाहशेखर कुमारप्रेम बल्लभ शर्मामोहन शर्मादिनेश जोशीआनन्द सनवाल सहित जगमोहन बिष्टनेहा मिश्राबाबूलाल मिश्राचंद्र सिंह कर्तवालसूरज सिंह भंडारीअशोक कुमार शाहप्रेम सिंह नेगीमगन सिंह रावतसुरेश तिवारी सहित बड़ी संख्या में उत्तराखंड के प्रवासी नागरिक उपस्थित थे.