रांची: “दर्शन के बिना साहित्य अधूरा है और साहित्य के बिना दर्शन. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं.” यह बात रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के निदेशक डा बीपी सिन्हा ने कही. वह स्टेट फिलासफिकल फोरम के तत्वावधान में दीपाटोली में आयोजित एक संगोष्ठी में बोल रहे थे, जिसका विषय ‘साहित्य में दर्शन’ था. उन्होंने फिल्म ‘गाइड’ के क्लिप्स को दिखाकर जीवन की दार्शनिक विचारधाराओं को व्यावहारिक रूप में अभिव्यक्त किया. उन्होंने कहा कि फिल्म का डायलाग ना खुशी है, ना गम है, ना इनसान है ना भगवान, सिर्फ मैं हूं, मैं हूं… सच कहें तो इसी में ही संपूर्ण जीवन का सार है. उनका कहना था इसका आशय यही है कि जिसने स्वयं को समझ लिया, मनुष्यता को समझ लिया, वह जीवन-दर्शन को समझ गया.
संगोष्ठी में अध्यक्षीय वक्तव्य डा अशरफ बिहारी ने दिया. उन्होंने कहा कि फोरम का उद्देश्य दर्शन को आम भाषा में आम लोगों तक पहुंचाना है. विषय प्रवेश संगोष्ठी की संयोजक डा जेनेट एंड्रयू शाह ने किया. संरक्षक डा सरस्वती मिश्रा ने दर्शनशास्त्र को सभी भाषाओं की जननी बताया. कार्यक्रम में सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र दिया गया. धन्यवाद ज्ञापन फोरम की उपाध्यक्ष डा सविता मिश्रा ने दिया. मौके पर सहसचिव डा प्रमोद सिंह, कोषाध्यक्ष डा प्रदीप कुमार गुप्ता, सह प्राध्यापक डा अजय कुमार सिंह, डा अशोक कुमार सिंह, डा आभा झा, डा सोनी सिंह, डा मल्लिका, डा पानों और रांची विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के शोध कर रहे विद्यार्थियों ने भी अपनी बातें रखीं. संगोष्ठी में अकादमिक जगत और दर्शन शास्त्र में रूचि रखने वाले कई गणमान्य भी उपस्थित थे.