नई दिल्लीः स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर गईं भी तो किस दिन? जिस दिन मां सरस्वती की प्रतिमा का विसर्जन होता है. पर इसलिए भी संगीत, साहित्य और कला जगत के लिए इस दिन का महत्त्व है कि 6 परवरी को ही कवि प्रदीप की जयंती है. वही प्रदीप जिनके बारे में यह कहा जाता कि लता मंगेशकर अगर पूरे जीवन प्रदीप जी के लिखे गाने के बाद एक भी गाना न गातीं, तब भी अमर हो जातीं. वह गीत था 'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी…' इस गीत के बारे में अब ढेरों कहानियां कही जातीं हैं. कहते हैं कि 1962 में चीन के आक्रमण से भारत का मनोबल घटा था. राष्ट्रभक्ति की भावना को बिना किसी उकसावे के एक संबल की जरूरत थी. सेना के जवानों को आर्थिक मदद की कोशिश में फिल्म उद्योग भी तब के प्रधानमंत्री की मदद के लिए आगे आया और एक चैरिटी शो नई दिल्ली में आयोजित करने की बात हुई. तिथि रखी गई 27 जनवरी, 1963 और आमंत्रित लोगों में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपति राधाकृष्णन को भी बुलावा भेजा गया. बॉलीवुड के इस सामूहिक प्रयास को महबूब खान, नौशाद, शंकर-जयकिशन, मदन मोहन और सी. रामचंद्र जैसे निर्देशक, संगीतज्ञों का समर्थन था, पर गाने की तलाश जारी थी.
कहते हैं कि सी रामचंद्र ने तब तक देशभक्ति गीतों के लेखक को लेकर मशहूर हो चुके कवि प्रदीप की याद आई. कहा जाता है कि जब वे कवि प्रदीप के पास पहुंचे तो उन्होंने उन्हें ताना मारा कि 'फोकट का काम हो तो आ जाते हो, खैर कोशिश करूंगा.' कहते हैं कवि प्रदीप इसी उधेड़बुन में लगे थे कि क्या लिखें कि एक दिन मुंबई में माहिम में समंदर के किनारे टहलते हुए उन्हें एक पंक्ति सूझी, पर उनके पास न कलम था न कागज. वहीं एक शख्स से कलम उधार मांग कर उन्होंने सिगरेट के पैकेट पर लिखा- कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई गुरखा, कोई मद्रासी, सरहद पर मरने वाला हर वीर था भारतवासी. ऐ मेरे वतन के लोगों… बाद का इतिहास पता है. कवि प्रदीप का जन्म 6 फरवरी, 1915 को मध्य प्रदेश के बड़नगर में हुआ था. उनका असली नाम रामचंद्र नारायण द्विवेदी था. कवि प्रदीप की पहचान 1940 में रिलीज हुई फिल्म बंधन से हुई. लेकिन उन्हें असली ख्याति 1943 की हिट फिल्म किस्मत के इस गीत से मिली 'दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है'. इस गीत ने उन्हें देशभक्ति गीत के रचनाकारों में अमर कर दिया. इस गीत से नाराज तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के कोप से बचने के लिए कवि प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा. उनका निधन 11 दिसंबर, 1998 को मुंबई में हुआ. आज लता जी के परलोक गमन और कवि प्रदीप की जयंती का कैसा संयोग बना.