नई दिल्ली: राजधानी के इंडिया हैबिटेड सेंटर में प्रवासी संसार फाउंडेशन ने डा अमरनाथ की नई पुस्तक ‘आजाद भारत के असली सितारे’ का लोकार्पण समारोह आयोजित किया. लेखक डा अमरनाथ ने पुस्तक की रचना प्रक्रिया का जिक्र करते हुए इस बात पर चिंता जाहिर की कि आजादी के आंदोलन के दौरान गांधी जी ने अहिंसक असहयोग आंदोलन तथा अनशन जैसे प्रतिरोध के लिए हथियार विकसित किए थे, वे हथियार आज भोथरे हो चुके हैं. इरोम शर्मीला आफ्स्फा जैसे काले कानून के खिलाफ सोलह साल तक अनशन करती है और अंत में थक हार कर उन्हें बिना शर्त अनशन वापस लेना पड़ता है. इसी तरह गंगापुत्र स्वामी सानंद को गंगा को निर्मल करने लिए एक सौ ग्यारह दिन तक अनशन करने के बाद प्राण त्यागना पड़ता है. इस तरह इन अहिंसक हथियारों पर से जनता का विश्वास दिन प्रतिदिन उठता जा रहा है, जो देश और समाज के हित में नहीं है. संगोष्ठी में मुख्य वक्ता लेखक और पूर्व आईएएस प्रेमपाल शर्मा प्रेमपाल शर्मा ने ग्रंथ में शामिल वर्गीज कुरियन सहित कई दूसरे सितारों के साथ अपने निजी संबंधों की विस्तार से चर्चा की और कहा कि ऐसी कृतियों के प्रणयन के पीछे भावना होती है परिवर्तन की और उन लोगों के कामों को याद करने की, जिन्होंने हमारे समाज को यहां तक पहुंचाया है. उन्होंने कहा कि जो समाज अपनी ऐसी विरासत को याद रखता है वही अपने देश के स्वस्थ भविष्य का निर्माण कर सकता है.

डा ओम निश्चल ने नरेंद्र दाभोलकर, डीएस कोठारी, ज्यां द्रेज, मेधा पाटकर, कर्पूरी ठाकुर, कांशीराम आदि का विस्तार से जिक्र करते हुए डा अमरनाथ की इस पुस्तक को समाज के लिए एक अद्वितीय उपलब्धि कहा, खास तौर पर छात्रों और शिक्षकों के लिए. सिर्फ साहित्य के अध्येताओं को ही नहीं, भारत के हर नागरिक को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए. मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव का प्रस्ताव था कि इसे दसवीं-बारहवीं के कोर्स में रखा जाना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी अपने इन देशज नायकों से परिचित हो सके. उन्होंने कहा कि सर्वभाषा ट्रस्ट नई दिल्ली द्वारा दो खंडों में प्रकाशित ‘आजाद भारत के असली सितारे’ पुस्तक में कुल 59 नायकों के जीवन और संघर्ष का अत्यंत सरल भाषा और रोचक शैली में तटस्थता और ईमानदारी के साथ चित्रण किया गया है. उन्होंने इन सितारों के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि इनके अध्ययन से हमारे भीतर भारत बोध का विस्तार होता है. कार्यक्रम की अध्यक्षता महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और प्रख्यात कथाकार विभूतिनारायण राय ने की. उन्होंने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में इस बात पर चिंता जाहिर की कि आखिर हमारा हिंदी समाज भारत के दूसरे समाजों की तरह अपने नायकों का सम्मान क्यों नहीं करता? उन्होंने पुस्तक में शामिल कई नायकों के साथ अपने रोचक संस्मरणों का जिक्र किया और अमरनाथ की इस पुस्तक को हिंदी समाज के लिए एक अद्वितीय देन कहा. स्वागत, संयोजन और संचालन डा राकेश पांडेय ने किया.