देहरादूनः अखिल भारतीय साहित्य परिषद ने उत्तराखंड के यशस्वी इंद्रमणि बडोनी की पुण्यतिथि पर कवि सम्मेलन का आयोजन किया. सम्मेलन का शुभारंभ समाजसेवी गजेंद्र सिंह कंडियाल, सुभाष गोयल, कविराज राजेंद्र तिवारी और अरुणा वशिष्ट ने संयुक्त रूप से देवी सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण कर किया. इसके पश्चात कवियों ने देशभक्ति और समाज को लेकर बेहद उम्दा रचनाएं सुनाईं. राजेंद्र तिवारी ने देशभक्ति कविता ‘मांगो ना मुकुट मां का कश्मीर न देंगे, कश्मीर मांगा है तस्वीर नहीं देंगे’ सुनाई, तो डॉ धीरेन्द्र रांगढ़ ने ‘आज फिर चूल्हा नहीं जला, खाने को मिली शराबी पति की मार, बच्चों को दुत्कार’ के माध्यम से नशे पर व्यंग किया. शिवप्रसाद बहुगुणा ने ‘बचाओ आज बेटी को, वही तो है हमारा कल, समंदर उड़कर के चलता जब कहते हैं उसे बादल’ सुनाकर बेटियों की महत्ता को उजागर किया. अरुणा वशिष्ठ ने ‘जरा हमें इन पेड़ों का सहारा तो लेने दो, बदल जाएगा यह शहर का सवेरा, नहीं रह जाएगा प्यार का बसेरा’ सुनाकर वाहवाही लूटी.
युवा कवि नरेंद्र दयाल ने ‘जय भारत जय उत्तराखंड रहे अजर अमर अखंड, जय भारत जय उत्तराखंड’ सुनाया तो, सुधीर बमोला ने ‘चूल्हे में जब गरीब की पकती हैं रोटियां, पूनम की गोल चांद सी दिखती है रोटियां’ की प्रस्तुति दी.मनोज कुमार गुप्ता ने ‘साहित्य से कैसी ठिठोली हो रही है जिसे देख मनु की कलम रो रही है’, तो महेश चिटकारिया ने ’फिर कंचे खेलने को दिल चाहता है, कहां है गिल्ली डंडा दिल ढूंढना चाहता है’, प्रेमकुमार सडना ने ‘बात मैं सुनता हूं उसकी गौर से जो दिया लेकर अंधेरों में खड़ा है' का सस्वर पाठ कर काव्यमय माहौल को गीतमय बना दिया. व्यंगकार राजेंद्र बहुगुणा ने ‘हवा में उड़ते देख तिरंगे को नहीं गवारा था, शब्द हवा में गूंज रहा है पाकिस्तान हमारा था’, आलम मुसाफिर ने ‘मोहब्बत लगाकर बाजार देखते हैं, मिलता है कि नहीं कोई खरीदार देखते हैं’, सतेंद्र चौहान ने ‘नगर के सामने इस शहर के पास कूड़ा रहता है देख लो तुम सुनाकर खूब तालियां बटोरी. इस अवसर पर आशाराम व्यास, लक्ष्मी प्रसाद सेमवाल, ब्रह्मानंद भट्ट, उषा भंडारी, सर्वेंद्र कंडियाल, विमला रावत, सुंदर कंडियाल, महिपाल बिष्ट, मदन शर्मा, गौरव चौहान, राहुल बिष्ट, घनश्याम नौटियाल आदि सहित कई साहित्यप्रेमी व छात्र उपस्थित थे.