जयपुरः साहित्य के दौरान सियासत और कूटनीति की चर्चा काफी मसालेदार होती है. जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में अफगानिस्तान और पाकिस्तान में अमेरिका के दखल पर आयोजित एक सत्र को सुनकर तो ऐसा ही लगा. देश के पूर्व रक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने इसमें हिस्सा लेते हुए कहा कि भारत को अफगानिस्तान में अपनी भूमिका के प्रति स्पष्ट रहना चाहिए और वह सब कुछ करना चाहिए जिससे तालिबान हिंसा से दूर हो और मुख्यधारा का हिस्सा बने. मेनन का कहना था कि भारत ने अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई है और उसे तीन बिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता देने का वादा भी किया है. नवम्बर में मॉस्को में अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया पर हुए सम्मेलन में भारत ने दो पूर्व कूटनीतिज्ञों को अनौपचारिक तौर पर भेजा था और वहां उच्चस्तरीय तालिबानी प्रतिनिधिमंडल भी मौजूद था. रूस की ओर से आयोजित इस सम्मेलन में अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों के साथ ही अमेरिका, पाकिस्तान व चीन सहित कई अन्य देशों के प्रतिनिधि भी शामिल थे.शिवशंकर मेनन ने खुलासा किया कि भारत युद्ध से पीडित रहे इस देश में शांति के लिए अफगानिस्तान के नेतृत्व में ही शांति प्रक्रिया के लिए प्रयास कर रहा है और तालिबान से दूरी बनाए रखने की नीति पर चल रहा है. हालांकि भारत को वो सारे प्रयास करने चाहिए जिससे तालिबान मुख्य धारा में आ सकें और कट्टरपंथी विचारों को छोड़, महिलाओं के साथ किए जा रहे अपने व्यवहार में बदलाव लाए. हालांकि यह कैसे होगा और क्या आकार लेगा, इस बारे में हम कुछ नहीं कह सकते. हमें तालिबान या किसी अन्य से बातचीत में अपनी भूमिका के बारे में स्पष्टता रखनी चाहिए. यह काम खुफिया एजेंसियों का है.
चीन में भारत के राजदूत रह चुके मेनन ने कहा कि अफगानिस्तान में कट्टरता की चुनौती को भारत में बढ़ाचढ़ा कर बताया गया, जबकि मुझे पिछले 40 साल में अफगानिस्तान का एक भी आतंकी नहीं मिला. आतंकवादी पाकिस्तान से आ रहे हैं और इस बारे में हमें कोई भूल नहीं करनी चाहिए. इस मौके पर अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व दूत हुसैन हक्कानी ने कहा कि मैं ऐसे पाकिस्तान की उम्मीद करता हूं जिसमें सिंधियों, बलूच, पश्तून, पंजाबियों और गिलगिट तथा बलूचिस्तान के लोगों को उनके लोकतांत्रिक अधिकार मिल सकें. तभी पाकिस्तान सफल हो सकेगा. उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान, सिंध और पख्तूनवा के लोगों को अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए पूरी दुनिया से समर्थन मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि यह बात कई पाकिस्तानी कहने से डरते हैं. मंजूश्री थापा ने भारत और नेपाल के आपसी रिश्तों के बारे में कहा कि ये बहुत भावनात्मक रिश्ते हैं. उन्होंने कहा कि भारत ने जिस तरह से नेपाल में संविधान तैयार करने की प्रक्रिया को 'मिसहैंडल' किया, उससे नेपाल में भारत के प्रति तीव्र विरोध था. उन्होंने कहा कि नेपाल के लिए भारत अपने संघीय ढांचे और सेक्युलर सोच के मामले आदर्श था, लेकिन जब यहां भी बहुसंख्यकों को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा तो नेपाल में लोग भ्रमित हो गए.