नई दिल्लीः "किसी भाषा का उत्सव एक दिवस के रूप में मनाना अपने आप में भाषा के विस्तार, सामाजिक जीवन के विभिन्न आयामों में उसकी व्यापकता को सीमित करता है. भाषा राजकीय उत्सवों से नहीं बल्कि जनसरोकारों और लोक पंरपराओं से समृद्ध होती है." हिंदी दिवस पर राजभाषा विभाग द्वारा विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु के ये शब्द थे. उन्होंने कहा कि यह स्वीकार करना होगा कि आज तक हम हिंदी को उसके उचित स्थान तक नहीं पहुंचा पाये हैं. आज भी हमारा राजकीय कार्य प्राय: अंग्रेजी में ही होता है.
उन्होंने कहा कि संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा स्वीकार करते हुए भी अन्य भारतीय भाषाओं की मर्यादा और महत्ता को संविधान की आठवीं अनुसूची में अंगीकार किया.उपराष्ट्रपति ने कहा “सभी भाषाएं हमारी हैं, हमारे पूर्वजों के ज्ञान की धरोहर हैं. यह प्रश्न भाषाई प्रतिस्पर्धा या वैमनस्य का है ही नहीं.” उपराष्ट्रपति ने राजभाषा विभाग से संविधान की धारा 351 के अंतर्गत अपेक्षाओं के प्रति सजग रहने को कहा, जिसमें हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में सौहार्द और सामंजस्य की अपेक्षा की गई है. उन्होंने कहा यह अपेक्षा की गई थी कि “संघ हिंदी के प्रसार के लिए प्रयत्न करेगा और हिंदी को इस प्रकार विकसित करेगा कि वह देश की मिलीजुली संस्कृति को अभिव्यक्त कर सके. संघ से यह भी अपेक्षा थी कि हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए संस्कृत, हिन्दुस्तानी और अन्य भारतीय भाषाओं के मध्य सतत संवाद को प्रोत्साहन देगा. जहां तक संभव हो भारतीय भाषाओं के शब्द, मुहावरे, लोकोक्तियों से हिंदी को समृद्ध किया जायेगा.” इस संबंध में उपराष्ट्रपति ने राजभाषा हिंदी भाषी कर्मचारियों के लिये अन्य भारतीय भाषाओं के छोटे ऑनलाइन कोर्स विकसित करने की सलाह दी.
इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने उनके द्वारा राज्य सभा में की गई पहल का भी जिक्र किया. इस अवसर पर आयोजित समारोह में गृहमंत्री राजनाथ सिंह, गृह राज्यमंत्री हंसराज अहीर और किरण रीजीजु की उपस्थिति में उपराष्ट्रपति ने विभिन्न श्रेणियों में सरकारी मंत्रालय, सार्वजनिक उपक्रमों, बैंकों और सरकारी संस्थाओं को हिंदी में कार्यकलाप करने के लिये 66 पुरस्कार दिये. यही नहीं हिंदी के स्वाध्याय के लिये ‘प्रवाह’ एप और ऑनलाइन हिंदी अनुवाद के लिये ‘कंठस्थ’ का भी उद्घाटन किया.