श्रीनगर: शेर-ए-कश्मीर इंटरनेशनल कंवेंशन सेंटर में आयोजित चिनार पुस्तक महोत्सव यहां का पहला राष्ट्रीय पुस्तक मेला है, जहां कश्मीर की आवाम के लिए देशभर की भाषाओं में हर विषय पर किताबें हैं. अपने माता-पिता के साथ आए नन्हे बच्चे चित्रों वाली किताबें पसंद कर रहे हैं, स्कूली बच्चें जो बड़ी तादाद में यहां देखने को मिल रहे हैं, उनका रुझान फिक्शन किताबों की तरफ ज्यादा है. घाटी के युवा एक तरफ जहां अमेरिकी साहित्यकार काहलिल गिबरान का फिक्शन और अफगानी-अमेरिकी लेखक खालिद हुसैनी को पढ़ना चाहते हैं, वहीं बच्चे ब्रिटिश लेखक जेके रोलिंग की हैरी पोर्टर सीरीज ले रहे हैं. जम्मू एवं कश्मीर के मशहूर साहित्यकार प्रो शफी शाक के कश्मीरी और अंग्रेजी में लिखी कविताओं, कहानियों को भी यहां खूब पसंद किया जा रहा है. चिनार पुस्तक महोत्सव में हर आयु वर्ग के पाठकों के लिए किताबें हैं. नन्हे बच्चों के लिए चित्र कहानियों की किताबें, स्कूल और कालेज के विद्यार्थियों के लिए कल्पना, रहस्य, साइंस फिक्शन, रामांचक, रोमांस, इतिहास, आत्मकथा, ड्रामा, क्लासिक्स, हास्य, वूमेन फिक्शन, सेल्फहैल्प, काव्य, गीत, ग्राफिक नावेल, संस्मरण आदि हर तरह की किताबें हैं. जम्मू और कश्मीर की विरासत को समझने का भी पाठकों में उत्साह है. वे कश्मीरी भाषा के जाने-माने लेखकों की किताबें, शब्दकोश, सूफी कविताओं का संकलन खरीद रहे हैं.

बहुत से युवा यहां करियर आरियेंटेड और गेट, नीट, जेईई, एनडीए, सीयूईटी, बैंकिंग, यूपीएससी की तैयारी करने के लिए किताबें यहां से ले रहे हैं. हरियाणा से आए वैदिक गणित विशेषज्ञ डा योगेश चंदाना के अनुसार, ”विद्यार्थियों से हमें वैदिक गणित सीखने को लेकर बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है. चिनार पुस्तक महोत्सव में विशेष रूप से बच्चों के लिए बनाए गए मंच से रचनात्मक गतिविधियों का सिलसिला जारी है. बुधवार को कथावाचक वसुधा आहुजा और कुनाल शांडिल्य ने बच्चों को लेखिका सुधा मूर्ति की दो कहानियां ‘फाइव स्पून्स आफ साल्ट’ और ‘राजा के सिर पर सींग’ सुनाईं. म्यूजिकल फार्मेट में सुनाई गई इन कहानियों ने बच्चों को कहानी सुनने-सुनाने का अनोखा तरीका सिखाया. इसी मंच से भोपाल की मनोवैज्ञानिक द्यूतिमा शर्मा ने भावनात्मक बौद्धिक क्षमता की कार्यशाला आयोजित की. कश्मीर युनिवर्सिटी की डीन, फैकल्टी आफ आर्टस प्रोफेसर आरिफा बुशरा ने ‘बच्चों के मानसिक पर किस्से-कहानियों का असर’ विषय पर बात की. उन्होंने बया कि बच्चों के विकास में परिवार के सदस्यों का अहम रोल होता है. प्रकाशकों को किस्से-कहानियों की किताबें ज्यादा से ज्यादा प्रकाशित करनी चाहिए ताकि इंटरनेट मीडिया के आदी बच्चों में पुस्तक पठन की संस्कृति विकसित की जा सके.