लखनऊ: राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत के सौजन्य से आयोजित गोमती पुस्तक महोत्सव अपने परवान पर है. उद्घाटन के अगले दिन शब्द संसार में आयोजित पहले सत्र में ‘रोल प्ले: सीखें और अभिनय करें‘ के तहत मुस्कान शर्मा ने बच्चों को तरह-तरह के भावों को प्रकट करना सिखाया. उन्होंने अलग-अलग प्रकार की तालियों को बजाने के माध्यम से बच्चों का ध्यान अपनी ओर केंद्रित किया और ‘हाई, हैलो‘ जैसे शब्दों के माध्यम से शब्दों और ध्वनियों के उतार-चढ़ाव के बारे में बच्चों को समझाया. उन्होंने बच्चों से कई रोचक गतिविधियां कराईं और बच्चों को अभिनय के बारे में रोचक जानकारी दी. दूसरे सत्र में चिन्मय त्रिपाठी और जोएल ने बच्चों को कविताओं का महत्त्व समझाया, उन्होंने बताया की कविता पाठ से हमारा बौद्धिक विकास तो होता ही है साथ ही इससे सामाजिक विकास भी होता है. चिन्मय ने बच्चों को ये भी बताया कि कैसे कविताओं का लय-ताल लेकर हम उसे गा भी सकते हैं. साथ ही उन्होंने बच्चों को दो पंक्तियां ‘चलते जाना, चलते जाना, जिंदगी तो है बहाना‘ दीं और उसके आगे की दो पंक्तियों को बच्चों को जोड़ने के लिए दिया. बच्चों ने अपने-अपने भावों को कविता को रूप दिया और बच्चों की दी गई कविता की पंक्तियों ‘चलते जाना, चलते जाना, जिंदगी तो है बहाना, अपनी मस्ती में है जीना, आगे क्या हो किसने जाना‘ को चिन्मय ने गीत के रूप में भी प्रस्तुत किया.
लेखक गंज में आयोजित पहले सत्र में प्रसिद्ध लेखकआनंद नीलकंठन ने पौराणिक कथाओं पर विस्तार से बात कही और पौराणिक कथाओं को लेकर किए जाने वाले प्रयोगों पर विस्तार से बात कही. नीलकंठन ने बताया कि फिल्म या स्क्रिन लेखन में दर्शक और निर्देशक के हिसाब से लिखना होता है और उपन्यास में लेखक अपने हिसाब से लिखता है. उन्होंने यह भी बताया कि कैसे रामायण को विभिन्न देशों के संस्कृतियों के हिसाब से प्रस्तुत किया जाता है. पौराणिक कथाओं में साहित्यिक सृजनात्मकता की काफी गुंजाइश होती है. इस सत्र का संचालन प्रोफेसर आरपी सिंह ने किया. इस मंच का दूसरा सत्र कारगिल विजय दिवस के 25 साल पूरे होने पर था, जिसमें दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन में संयुक्त महाप्रबंधक और ‘कारगिल-एक यात्री की जुबानी‘ पुस्तक के लेखक ऋषि राज मुख्य वक्ता थे. इस सत्र में कारगिल युद्ध में लड़े सैनिक कप्तान शत्रुघ्न सिंह, ‘वीर चक्र‘ भी शामिल थे. ऋषि राज ने कारगिल युद्ध से जुड़े और भी कई तथ्यों को बताया कि कैसे हमारे सैनिकों ने पाकिस्तान के द्वारा किये गये भ्रामक दावे को गलत साबित किया. शत्रुघ्न ने भी अपने अनुभव दर्शकों से साझा किये. तीसरा सत्र गोमती के किनारे बसे शहर लखनऊ के सांस्कृतिक-रचनात्मक संबंधों पर आधारित रहा. इस सत्र में दो वक्ताओं डा स्मृति सारस्वत और विपुल वार्ष्णेय ने अपने विचार रखे. इस सत्र के लेखक हैं चन्दर प्रकाश जी, जो शहर का एक जाना-पहचाना नाम है. पुस्तक महोत्सव में शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम के अंतर्गत युग्म बैंड द्वारा मनोरम प्रस्तुति दी गई.