नई दिल्ली: साहित्य अकादेमी द्वारा स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ‘स्वतंत्रता की संकल्पना’ विषय पर एक परिसंवाद का आयोजन किया गया. परिसंवाद की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार और संपादक रामबहादुर राय ने की. परिसंवाद में विभिन्न कार्य क्षेत्रों के ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों ने भाग लिया. कार्यक्रम के आरंभ में स्वागत वक्तव्य देते हुए अकादेमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने कहा कि आजादी हमारा बुनियादी अधिकार है. इसके कई स्वरूप हैं लेकिन मुख्यता यह समानता के सबसे ज्यादा नजदीक है. प्रसिद्ध चिकित्सक बृजेश शर्मा ने कहा कि आजादी की संकल्पना तभी पूरी होगी जब सबको बराबर की आजादी हो. उन्होंने महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव विशेष तौर पर उनके साथ हो रही यौन हिंसा पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आजादी में महिला समाज की भी बराबर की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए. प्रख्यात नाट्य निर्देशक चित्तरंजन त्रिपाठी ने कहा कि कहने की आजादी सबसे महत्त्वपूर्ण है और वही हमारे अस्तित्व के लिए निर्णायक है. उन्होंने इस संदर्भ पर सुंदर गीत भी प्रस्तुत किया. देश के प्रख्यात शिक्षाविद जेएस राजपूत ने कहा कि हमारी स्वतंत्रता की संकल्पना महात्मा गांधी के आसपास घूमती थी. हमारी शिक्षा में अनेक जीवन मूल्य जैसे कि त्याग का महत्त्व, समाज में एक दूसरे की सहायता आदि मुख्य रूप से सामने आने चाहिए थे लेकिन वह नहीं हुआ. शिक्षक का सम्मान भी बहुत जरूरी था, वह भी हम नहीं कर पाए हैं. उन्होंने गांधी को भूलने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमारे समाज के लिए अच्छा नहीं है. आगे उन्होंने कहा कि देश की उन्नति को पहचानने का सबसे बड़ा साधन वहां के शिक्षा संस्थानों की उत्कृष्टता होनी चाहिए जो कि अब नहीं रही है. प्रसिद्ध वकील कमलेश जैन ने कहा कि जब तक सबके लिए न्याय है तब तक ही स्वतंत्रता का कोई मतलब है. उन्होंने वकीलों या न्यायालय की भाषा पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब तक यह अंग्रेज़ी में होता रहेगा, सामान्य लोगों को न्याय नहीं प्राप्त होगा. आगे उन्होंने कहा कि अगर हिंदी भाषा में या भारतीय भाषाओं में काम होगा तब ही भाव और भाषा की गरिमा और सम्मान बचा रहेगा. वरिष्ठ पत्रकार और गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने कहा कि आजादी के साथ बहुत सी जिम्मेदारियां आती हैं. स्वतंत्रता का मतलब यही है कि हम आजादी की बात आजादी के साथ कह सकें. राजनीतिक आजादी तो हमें मिल गई है लेकिन आजादी निरंतर विकास का नाम है और यह हमें लगातार अर्जित करनी होगी. हमें स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जिन लोगों ने कुर्बानी दी उनकी विरासत को भी याद रखना आवश्यक है.
प्रसिद्ध लेखिका और दलित सामाजिक कार्यकर्ता अनिता भारती ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अलावा सामाजिक स्वतंत्रता भी बेहद ज़रूरी है. वंचितों को बहुत से अधिकार तो मिले हैं लेकिन अभी भी वह पूरी तरह उन तक नहीं पहुंचे हैं. संविधान हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि है और उसी से हम सब समान रूप से जीने की आजादी पा सकते हैं. विख्यात लेखिका नासिरा शर्मा ने कहा कि आजादी के साथ बहुत सी भ्रांतियां जुड़ी हुई हैं जिन्हें नई पीढ़ी के सामने स्पष्ट करना बेहद जरूरी है. सरकारों को नागरिक सोच का सम्मान करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि गांधी को आज के समाज में नए तरीके से प्रस्तुत करने की जरूरत है क्योंकि तभी नई जनरेशन उनकी बातों और उनके महत्त्व को समझ सकेगी. उन्होंने लेखन में भी सकारात्मकता लाने की बात कही. प्रसिद्ध पत्रकार शिवकुमार राय ने कहा की आजादी की संकल्पना में हमें भारत की संवैधानिक सीमाओं का भी ध्यान रखना चाहिए. आजादी को सामूहिक जीवन में भी महसूस किया जाना जरूरी है. प्रसिद्ध नृत्यांगना शोभना नारायण ने कहा कि आजादी के वृक्ष की देखभाल करना हमारी जिम्मेदारी है तभी वह आगे सुरक्षित रहेगी. उन्होंने स्वाभिमान और अहंकार में अंतर बताते हुए कहा कि आज हमें सच्ची इंसानियत की जरूरत है तभी हम अनैतिक मूल्यों की तरफ आकर्षित होने से बचेंगे. प्रसिद्ध संगीतकार पंडित उदयकुमार मल्लिक ने कहा कि स्वतंत्रता के बिना कोई भी संकल्पना संभव नहीं है. स्वतंत्रता के लिए कर्म योग ही सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है. अंत में परिसंवाद की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध पत्रकार और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने कहा कि देश के लिए राजनीतिक स्वतंत्रता और संविधान का बनना बड़ी घटना थी, वह इसलिए भी क्योंकि हमारी विविधता बहुआयामी थी. उन्होंने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि स्वतंत्रता के महानायक गांधी के उत्तराधिकारियों ने उनके साथ छल किया है. हमने उनके सपने के भारत को बनाने के लिए उनकी संकल्पनाओं पर विचार नहीं किया और न ही उन्हें आगे बढ़ाने की कोशिश की. इस संबंध में उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने जरूर गांधी के सपनों को पूरा करने की कोशिश की और उसके लिए प्रयास भी किए. उन्होंने पंचायती राज का जिक्र करते हुए कहा कि पंचायतों को अधिकार मिलने जरूरी थे लेकिन ब्यूरोक्रेसी की लापरवाही के कारण उन्हें नहीं मिल पाए.आगे उन्होंने कहा कि हमारे देश की आजादी तभी हर क्षेत्र में उड़ान भर पाएगी जब हम उसका लोकतंत्रीकरण गांधी के हिसाब से कर पाएंगे. कार्यक्रम के अंत में श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर भी दिए गए. कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादेमी के संपादक अनुपम तिवारी ने किया.