हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के
आँधी ने ये तिलिस्म भी रख डाला तोड़ के…
आज अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान की जयंती है. हिंदी साहित्य और उर्दू शायरी की दुनिया उन्हें शहरयार के नाम से जानती है. शहरयार उनका उपनाम था. वह एक चर्चित शिक्षाविद और उर्दू के दिग्गज शायर थे. 1965 में 'इस्मे-आज़म' के नाम से उनका पहला संग्रह छपा और इसके साथ ही वह शायरी की दुनिया में छा गए. इसके बाद तो उनकी 'ख़्वाब का दर बंद है', 'शाम होने वाली है', 'मिलता रहूँगा ख़्वाब में' 'इस्मे आज़म', 'सातवाँ दरे-हिज्र के मौसम', 'सैरे-जहाँ', 'कहीं कुछ कम है', 'नींद की किरचें', 'फ़िक्रो-नज़र', 'शेअरो-हिकमत' जैसी चर्चित किताबें छपीं.
मुजफ्फर अली से दोस्ती के चलते शहरयार ने फिल्मों के गीत भी लिखे, जिनमें 'उमराव जान' का 'ये क्या जगह है दोस्तो, ये कौन सा दयार है, हद्द-ए-निगाह तक जहाँ ग़ुबार ही ग़ुबार है…' जैसा गीत भी शामिल है. हालांकि शहरयार ने इसके के अलावा 'गमन' और 'अंजुमन' जैसी फ़िल्मों के गीत भी लिखे. लेखन के लिए शहरयार कई सम्मानित पुरस्कारों से नवाजे गए थे, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ सम्मान के अलावा उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार, फ़िराक सम्मान, शरफ़ुद्दीन यहिया मुनीरी इनाम और इक़बाल सम्मान आदि शामिल है. अफसोस की कोरोना के चलते इस अजीम शायर की जयंती पर उन्हें उस तरह से नहीं याद किया गया, जिसके वह हकदार हैं.