नई दिल्ली: साहित्य अकादमी ने प्रख्यात लेखिका और अकादमी की मानद महत्तर सदस्य कृष्णा सोबती के निधन की खबर पाते ही दिवंगत लेखिका के सम्मान में अकादमी के सभी कार्यालयों में आधे दिन का अवकाश कर दिया. इतना ही नहीं साहित्य अकादमी परिवार ने राजधानी के तृतीय तल स्थित सभाकक्ष में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की, जिसमें अकादमी के सभी उपस्थित अधिकारियों और कर्मचारियों ने कृष्णा सोबती की स्मृति में 1 मिनट का मौन रखकर उनके प्रति अपनी श्रद्धा निवेदित की. उसके बाद अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि हिंदी की प्रख्यात लेखिका और विदुषी कृष्णा सोबती भारतीय साहित्य में अपनी प्रतिष्ठा, साफ-सुधरी रचनात्मकता और अप्रतिम अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती रही हैं, आपने हिंदी की कथा-भाषा को अपनी विलक्षण प्रतिभा से ताज़गी और स्फूर्ति प्रदान की, आपकी रचना में आख्यान का तत्त्व प्रधानता से मौजूद रहा है और हिंदी तथा उर्दू का हिंदुस्तानी संस्कार आपकी भाषा और कहन के अंदाज़ को अनुपम बना देता है. कृष्णा सोबती उन उपन्यासकारों की पंक्ति में अग्रणी हैं, जिनकी रचनाओं में कहीं वैयक्तिक तो कहीं पारिवारिक-सामाजिक विषमताओं का प्रखर विरोध मिलता है. आपकी रचनात्मक संवेदनशीलता स्त्रियों और मुस्लिम समाज को बहुत आत्मीयता से स्पर्श करती है और उनके सम्यक संसार को अपनी सृजनात्मकता के केंद्र में ले आती है. दक्षिण एशियाई फलक पर साहित्य के परिदृश्य में कुरर्तुल-ऐन हैदर, इस्मत चुग़ताई, अमृता प्रीतम जैसी दिग्गज पूर्ववर्ती लेखिकाओं से अलग, कृष्णा सोबती अपनी रचनाओं में एक विशिष्ट संवेदना, मुहावरे और बहुत स्थानिक पर्यावरण की ख़ुशबू संजोए, हमें उद्वेलित, विचलित और रोमांचित करती हैं.
कृष्णा सोबती ने अपनी अत्यंत चर्चित कई कृतियों से भारतीय साहित्य में श्रीवृद्धि की है, जिनमें कुछ प्रमुख हैं – डार से बिछुरी, मित्रो मरजानी, सूरजमुखी अँधेरे के, ज़िंदगीनामा, यारों के यार, तिनपहाड़, दिलो-दानिश, हम हशमत (उपन्यास), बादलों के घेरे, मेरी माँ कहाँ, सिक्का बदल गया (कहानी) आदि. आपको अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से अलंकृत किया गया, जिनमें प्रमुख हैं – वर्ष 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मभूषण, साहित्य शिरोमणि सम्मान, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार, साहित्य कला परिषद पुरस्कार, कथा चूड़ामणि पुरस्कार, हिंदी अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार आदि. साहित्य अकादेमी ने कृष्णा सोबती को अपने सर्वोच्च सम्मान महत्तर सदस्यता से वर्ष 1996 में अलंकृत किया था. कृष्णा सोबती ने अपने सुदीर्घ सृजनात्मक जीवन से भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है. कृष्णा सोबती के निधन से भारतीय साहित्य-संसार गहरे शोक में है और यह क्षति पूरी नहीं हो सकती. उधर वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने अपनी फेसबुक पोस्ट में कृष्णा सोबती के निधन पर दुख जाहिर करते हुए लिखा, 'हिन्दी की शिखर-गद्यकार, अन्याय के विरुद्ध सदा एक सशक्त आवाज कृष्णा सोबती सुबह नहीं रहीं. हाल में जब उनसे अस्पताल में मिलकर आया, बोली थीं कि आज 'चैस्ट' में दर्द उठा है. हालांकि तब भी देश के हालात पर अपनी व्यथा जाहिर करती रहीं. हम ही उन्हें छोड़कर उठे. कहते हुए कि दर्द ठीक हो जाएगा. आपको सौ साल पूरे करने हैं. उस दशा में भी वे मुस्कुरा दी थीं. जबकि सचाई हम सबके कहीं करीब ही थी. शायद यही सोच मैंने कुछ तसवीरें लीं. शायद उनकी आखिरी छवियां.'