वाराणसी: “राजेश्वर आचार्य काशी के एक बौद्धिक सर्वहारा के रूप में हमारे सम्मुख विद्यमान हैं. वे किसी भी विषय पर अपनी बात रख सकते हैं. वे भाषा को साधते भी हैं और शोधते भी हैं.” यह बात प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने ‘काशी के संगीताचार्य पद्मश्री राजेश्वर आचार्य: संगीत की बहती अविरल धारा‘ पुस्तक के विमोचन अवसर पर बतौर विशिष्ट अतिथि कही. स्थानीय रथ यात्रा चौक स्थित कन्हैया लाल स्मृति भवन में काशी कला कस्तूरी की ओर से इस पुस्तक का विमोचन और परिचर्चा आयोजित की गयी थी. शुक्ल ने आचार्य की भाषिकता पर अपनी बात रखते हुए कहा कि आचार्य रचंत नहीं फिरंट बोलते हैं, पढ़ंत नहीं जीवंत बोलते हैं. राजेश्वर आचार्य में अपने श्रेष्ठ आचार्य परम्परा की गहरी समझ रही है. वे आरोह और अवरोह एक साथ साधते हैं. उनके व्यक्तित्व में सम और विषम का अद्भुत सामंजस्य है. उनके व्यक्तित्व में उल्लसित बालक बोध का संचार अनवरत बना हुआ है. सरलता और सूत्रात्मकता दोनों ही उनके भीतर विद्यमान है.
अपनी बात को विस्तार देते हुए प्रो शुक्ल ने कहा कि भारतेंदु की सांस्कृतिक निजता भी आचार्य में दिखती है. यह पुस्तक आचार्य राजेश्वर के जीवन-वृत्त से आजीवन कृत्य की पूंजी है. शुक्ल ने अपने वक्तव्य में आचार्य के तमाम संघर्षो और उनकी उपलब्धियों को भी रेखांकित किया. याद रहे कि यह पुस्तक डा शबनम खातून ने लिखी है. इस कृति की विशेषता यह है कि इसमें राजेश्वर आचार्य के पिछले कई दशकों के संघर्ष एवं योगदान को बड़े ही सहज ढंग से दर्ज किया गया है. इसके साथ ही आचार्य के प्रारम्भिक जीवन, उनकी शिक्षा-दीक्षा के साथ-साथ संगीत के प्रति उनकी लगन एवं संगीत और साहित्य के तमाम आयोजनों में उनकी उपस्थिति को भी प्रमुख रूप से दर्ज किया गया है. पुस्तक विमोचन अवसर पर संगीतशास्त्री राजेश्वर आचार्य, मुख्य अतिथि लोक गायिका मालिनी अवस्थी, विशिष्ट अतिथि आर्यमा सान्याल, उर्मिला श्रीवास्तव और विशिष्ट वक्ता थे. पुस्तक की लेखिका शबनम खातून, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो वशिष्ठ द्विवेदी सहित शहर के महत्त्वपूर्ण गणमान्य जन भी उपस्थित थे.