लखनऊः उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी ने दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन ‘कला के विविध आयाम' विषय पर किया था, जिसमें पढ़े गए शोधपत्रों से साहित्य और कला के अटूट संबंध उजागर हुए. शब्द और भावों के बिना कला अपने संपूर्ण रूप में अभिव्यक्त नहीं हो सकती क्योंकि कलाकार अपनी कल्पना को ही तो मूर्त रूप देने की कोशिश करता है. संगोष्ठी के प्रथम सत्र में गोरखपुर, लखनऊ, मऊ, आगरा, बिहार, नई दिल्ली, अलीगढ़ व बरेली से आए शिक्षक व शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए. उल्लेखनीय यह था कि यहां आधुनिक कला, भारतीय चित्रकला व लोककला के साथ-साथ मंचीय कला पर भी शोधपत्र प्रस्तुत किए गए. द्वितीय सत्र की अध्यक्षता कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ के डॉ. भूपेश चन्द्र लिटिल ने की. इस सत्र में नई दिल्ली व श्रीनगर से आए शिक्षकों व शोधार्थियों ने कला पर्यटन व टूरिज्म एंड आर्ट पर विचार व्यक्त किए. पहले दिन के तृतीय व समापन सत्र की अध्यक्षता कला एवं शिल्प महाविद्यालय, लखनऊ के प्राचार्य डॉ. रतन कुमार ने की. इस सत्र में विशेष रूप से लोक कलाओं के विभिन्न स्वरूपों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए.
इस संगोष्ठी में भुवनेश्वर से आए कलाकार पंचानन का 'लॉर्ड जगन्नाथ इन द आर्ट एंड कल्चर ऑफ उड़ीसा' विषय पर प्रस्तुत किया गया शोध पत्र काफी चर्चा में रहा, इनके साथ ही हरियाणा, गाजीपुर, खैरागढ़, कानपुर, प्रयागराज व मैनपुरी के शिक्षकों, शोधार्थियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए. तृतीय सत्र में ही कुम्भ-2019 में ‘कला के रंग कुम्भ के संग' शीर्षक से आयोजित हुई अखिल भारतीय कला प्रदर्शनी के कैटलॉग का विमोचन भी किया गया. संगोष्ठी के दूसरे दिन जेजेटीयू झुंझुनू, राजस्थान के प्रो. श्रीकृष्ण यादव ने अपना व्याख्यान दिया. इस दिन कलाकार मिठाई लाल ने भी अपना शोधपत्र पढ़ा. उनके शोधपत्र का विषय था 'राजा रवि वर्मा के चित्र- अभिज्ञान शाकुन्तलम् के विशेष सन्दर्भ में.' दो दिनों तक चली इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में लगभग 125 शिक्षकों व शोधार्थियों ने हिस्सा लिया और लगभग 85 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए.