नई दिल्ली: ऐलिसन बुश की पुस्तक ‘पोएट्री आफ किंग्स: द क्लासिकल हिंदी लिटरेचर आफ मुगल इंडिया‘ के हिंदी अनुवाद को वाणी प्रकाशन समूह ने ‘दरबारी काव्य : मुगलकालीन हिंदी साहित्यिक परिवेश‘ नाम से प्रकाशित करने की घोषणा की है. पुस्तक का हिंदी अनुवाद रेयाजुल हक ने किया है और भूमिका टेक्सास विश्वविद्यालय आस्टिन के एशियाई अध्ययन विभाग के सहायक प्राध्यापक दलपत राजपुरोहित ने लिखी है. ऐलिसन बुश भारतीय साहित्य की एक प्रमुख विद्वान थींजो विशेष रूप से मुगलकाल के हिंदी साहित्य पर अपने शोध के लिए प्रसिद्ध थीं. उन्होंने ब्रजभाषा काव्य में विशेष रुचि ली तथा मुगल व राजपूत दरबारों के गहरे सम्बन्धों का अध्ययन किया. बुश के शोध ने यह उजागर किया कि किस प्रकार आरम्भिक आधुनिक कविता दरबारी संस्कृति से गहराई में जुड़ी हुई थी और किस प्रकार कालजयी हिंदी साहित्य का एक राजनीतिक और सांस्कृतिक भी महत्त्व था.

ऐलिसन बुश की पुण्यतिथि पर वाणी प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने कहा कि ऐलिसन बुश का नाम हिंदी के विद्वानों की प्रथम पंक्ति में लिया जाता है. रीतिकाव्य की नयी परतें उकेरती यह पुस्तक हिंदी आलोचना के नये आयाम उजागर करेगी. बुश की पुस्तक बताती है कि मुगलकालीन हिंदी साहित्य उस समय के राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन का प्रतिबिम्ब था. कविता राजसी संरक्षण का एक माध्यम बन गयी थी और दरबारी एवं सामाजिक जीवन में गहराई से घुल-मिल गयी थी. उनका तर्क है कि यह क्लासिकल हिंदी साहित्यिक परम्परा न केवल मनोरंजन का साधन थीबल्कि यह राजसी पहचान के निर्माण और राजनीतिक वैधता का भी उपकरण थी. कवियों ने वीरताभक्तिप्रेम और नैतिकता जैसे विषयों को उठाया और उनके रचनाकर्म का निर्माण मुगल शासन के व्यापक राजनीतिक और सांस्कृतिक सन्दर्भ में हुआ. एक तरह से यह पुस्तक आरम्भिक आधुनिक हिंदी साहित्य का इतिहास भी उजागर करती है.