नई दिल्ली: एशियाई संस्कृति, परंपरा और मूल्य इतिहास के हमलों को सहते हुए भी अडिग रहे हैं, जो बुद्ध के अंतर्निहित मूल्यों का प्रमाण हैं. पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन में वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि बुद्ध की शिक्षाएं दर्शन शास्त्र के साथ-साथ व्यवहारिक रूप से भी एशिआई राष्ट्रों और संस्कृतियों को संकट के समय में स्थिर रखने में मदद करती हैं. संस्कृति मंत्रालय और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ द्वारा आयोजित पहले एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन का विषय था ‘एशिया को मजबूत बनाने में बौद्ध धम्म की भूमिका‘, जिसमें 32 देशों के 160 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. महासंघ के सदस्य, विभिन्न मठवासी परंपराओं के प्रमुख, भिक्षु, भिक्षुणियां, राजनयिक समुदाय के सदस्य, बौद्ध अध्ययन के शिक्षक, विशेषज्ञ और विद्वान, लगभग 700 प्रतिभागियों ने इस विषय पर उत्साहपूर्वक चर्चा की.इसे ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन और महत्वपूर्ण आयोजन बताते हुए वियतनाम के राष्ट्रीय वियतनाम बौद्ध संघ के उपाध्यक्ष थिच थीएन टैम ने कहा कि इसने बौद्ध विरासत के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि की है, जिसकी जड़ें यहां हजारों वर्षों से है और जो पूरे एशिया में सांस्कृतिक कूटनीति और आध्यात्मिक समझ को आकार देती रही है. उपाध्यक्ष ने कहा कि इस शिखर सम्मेलन में वर्तमान समय की वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में बौद्ध धम्म की स्थायी प्रासंगिकता को प्रदर्शित किया है तथा आध्यात्मिक मार्गदर्शक और सांस्कृतिक सेतु के रूप में धम्म की शक्ति को रेखांकित किया है, जो सीमाओं के पार शांति, करुणा और समझ को बढ़ावा देने में सक्षम है. उन्होंने कहा कि पिछले दो दिनों में हुई चर्चाओं की विविधता और गहराई ने राष्ट्रों को एकजुट करने में बौद्ध धम्म की महत्त्वपूर्ण भूमिका को सुदृढ़ किया है तथा अहिंसा, नैतिक अखंडता और सामूहिक कल्याण के प्रति हमारी साझा प्रतिबद्धता को मजबूत किया है.
श्रीलंका के अमरपुरा महानिकाय के महानायके वासकादुवे महिंदावांसा महानायके थेरो ने कहा कि यह तथ्य कि विभिन्न परंपराओं के महान गुरु यहां अहिंसा और शांति पर चर्चा करने के लिए एकत्र हुए हैं, जबकि बाहर जो दुनिया है वो बंदूकों और राकेटों से अपने और इस ग्रह को नष्ट कर रही है, यह दर्शाता है कि हमारी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. हमें अपने दिल में उस ऊर्जा को पैदा करना है, उसे फैलाते रहना है; एक दिन निश्चित रूप से हम अपना लक्ष्य प्राप्त करेंगे. नेपाल के लुम्बिनी विकास ट्रस्ट के उपाध्यक्ष खेंपो चिमेड ने सुझाव दिया कि इस सभा से पता चलता है कि संघ के कई विद्वान और जानकार सदस्य हैं, यह समय इस महान ज्ञान और ऐतिहासिक ज्ञान को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का है. उन्होंने कहा कि ज्ञान को हस्तांतरित करने के लिए मठवासी शिक्षा के लिए हिमालय में एक शैक्षणिक संस्थान स्थापित करके ऐसा किया जा सकता है. अपने विशेष संबोधन में धर्मशाला के ड्रेपुंग लोसेलिंग मठ के क्यबजे योंगज़िन लिंग रिनपोछे ने कहा कि यद्यपि तिब्बतियों को अपनी भूमि छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था, लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि वे पूरी दुनिया में फैल गए और दुनिया भर में सैकड़ों मठ बन गए. ‘अब बहुत से लोग बौद्ध धर्म के बारे में जानते हैं, हमें तिब्बती संस्कृति और मूल्यों को संरक्षित करना होगा, और जैसा कि दलाई लामा वकालत करते हैं, प्राचीन भारतीय नालंदा परंपरा को पुनर्जीवित करना होगा. अपने ज्ञान और विशेषज्ञता के साथ मजबूत संबंध बनाएं, आध्यात्मिक रूप से सहयोग करें और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें. आइए हम यहां मौजूद सभी लोगों द्वारा दिखाए गए समर्पण से प्रेरित होकर आगे बढ़ें. समापन भाषण में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ के महासचिव शत्से खेंसुर जंगचुप चोएडेन ने बुद्ध धम्म की जन्मस्थली से विश्व से बौद्ध मूल्यों को बढ़ावा देने का आह्वान किया, जो क्षेत्रीय और वैश्विक सद्भाव के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं. एशियाई बौद्ध शिखर सम्मेलन के समापन पर दिल्ली घोषणा-पत्र पढ़ते हुए आईबीसी के महानिदेशक अभिजीत हलदर ने कहा कि गहन विचार-विमर्श और साझा आकांक्षाओं का कुल निचोड़ जो सामने आया, उसका उद्देश्य एक दयालु, सामंजस्यपूर्ण और समावेशी एशिया को बढ़ावा देना था.