नई दिल्लीः मशहूर उर्दू लेखक, हास्य और व्यंग्य रचनाकार मुज्तबा हुसैन का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. उनके निधन से उर्दू में व्यंग्य परंपरा का एक बड़ा स्थान रिक्त हो गया. उनके निधन को भारतीय उप-महाद्वीप में उर्दू साहित्य के लिए एक बड़ी क्षति माना जा रहा है. उर्दू के 'मार्क ट्वेन' के रूप में विख्यात मुज्तबा हुसैन अपने समय के सबसे प्रिय उर्दू हास्यकार थे. साल 2007 में उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया था. मुज्तबा हुसैन ने साहित्यिक जीवन की शुरुआत अपनी रचना 'सियासत' से की, जो हैदराबाद से प्रकाशित एक प्रमुख उर्दू दैनिक में छपती थी. पाठकों को इस अखबार में उनके संडे कॉलम का बेसब्री से इंतजार रहता था. कहा जाता है कि मुज्तबा हुसैन की किताबें पढ़ने के लिए कई लोगों ने एक जमाने में उर्दू सीखी. उनके निधन पर ममता कालिया, धीरेंद्र अस्थाना, जय प्रकाश मानस, साधना अग्रवाल और लालित्य ललित जैसे हिंदी के साहितुअकारों, व्यंग्यकारों व पत्रकारों ने भी शोक जाहिर किया है.
मुज्तबा हुसैन ने अपने जीवन काल में कई पुस्तकें और यात्रा-वृत्तांत लिखे. पर सबसे ज्यादा चर्चा बटोरी 'जापान चलो जापान' ने. 'जापान चलो जापान' उर्दू साहित्य में उनके सबसे बड़े योगदान में से एक माना जाता है. कहा जाता है कि अपनी पुस्तक 'जापान चलो जापान' में उन्होंने एक ऐसे समय में इस देश के बारे में ऐसी दुर्लभ, अनूठी और हास्यप्रद बातें बताईं, जब उस देश की यात्रा कम ही लोग किया करते थे. इसके अलावा 'मुज्तबा हुसैन के सफ़रनामे', 'मुज्तबा हुसैन के मुन्तख़ब कॉलम', 'आपकी तारीफ', 'आदमी नामा', 'चेहरा दर चेहरा', 'मुज्तबा हुसैन की बेहतरीन तहरीरें', 'तकल्लुफ बर तरफ' जैसी किताबें भी लिखीं. खास बात यह भी कि उनके 'तकिया कलाम', 'दीमकों की मलिका से एक मुलाकात', 'मुशायरे और मुजरे का फ़र्क़' जैसे तंज काफी मशहूर हुए थे. मुज्तबा हुसैन प्रसिद्ध लेखक इब्राहिम जलीस के भाई थे, जो पाकिस्तान चले गए थे. उनके जीवनकाल में ही उन पर भारत के विभिन्न विद्वानों द्वारा कम से कम 12 शोध ग्रंथ लिखे गए. इसके अलावा मुज्तबा हुसैन की रचनाओं का ओड़िया, कन्नड़, हिंदी, अंग्रेजी, रूसी और जापानी भाषाओं में अनुवाद भी होता रहा है. जाहिर है उनका निधन उर्दू व्यंग्य जगत के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं.