नई दिल्लीः “मनोहर श्याम जोशी मूलतः प्रश्नाकुल लेखक थे, जिन्होंने कभी साहस का साथ नहीं छोड़ा. आज के समय में लेखकों में उनकी तरह की भाषा में बड़ी बातों को लिखने का कौशल होना चाहिये. जिससे लेखकों की बात दूर दूर तक जाये.” इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में मनोहर श्याम जोशी स्मृति व्याख्यानमाला में यह बात जोशी के पुत्र और अमेरिका के बाल्टीमोर विश्वविद्यालय में साइबर सुरक्षा के प्रोफेसर अनुपम जोशी ने कही. जानकी पुल ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में जोशी के साहित्य की अनेकार्थता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि वे दुनिया भर के साहित्य ज्ञान के उद्धरण देते थे और उनके लेखन में बहुलता और विविधता की आभा थी. उनके उपन्यासों को साधारण कहानी की तरह पढ़ा जा सकता है, तो बहुत से अर्थों को ग्रहण किया जा सकता है. इस अवसर पर ‘साहित्य के हस्तक्षेप‘ विषय पर लेखक-विचारक अशोक वाजपेयी ने व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि साहित्य में तरह-तरह के हस्तक्षेप बढ़ते जा रहे. उन्होंने जोशी की एक कविता का हवाला दिया, जिसमें हनुमान का नाम आया है. उन्होंने कहा कि अब धर्म, राजनीति और मीडिया साहित्य के सहचर नहीं रहे बल्कि वे सब झूठ हिंसा नफरत कदाचार और सत्ता के चाटुकार हो गए हैं जबकि साहित्य अपने समय में झूठ से लड़ रहा है और वह अकेला और निहत्था भी हो गया है पर उसने सच का साथ नहीं छोड़ा है.
वाजपेयी ने कहा कि किस तरह धार्मिक और राजनीतिक सत्ताएं, संस्थाएं, शिक्षा व्यस्था, मीडिया और सोशल मीडिया, बाजार सभी साहित्य में हस्तक्षेप कर रहे हैं और समाज में झूठ, नफरत, हिंसा, कदाचार, हत्या, आदि में लिप्त हैं लेकिन साहित्य अपने समय देशकाल में सत्य की रक्षा के लिए लड़ रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि हम ‘बहु-समय‘ में रह रहे हैं. आज के समय में कोई एक समय में नहीं जी रहा है. इसलिए इस बहुलता की रक्षा करनी बहुत जरूरी है और यह काम साहित्य ही कर सकता है. उन्होंने कहा कि कभी धर्म, राजनीति और मीडिया साहित्य के सहचर थे लेकिन उन्होंने साहित्य का साथ छोड़ दिया है. ये सभी ताकतें सत्ता की वफादारी में लगी हैं उनका गुणगान कर रहीं हैं. हिंदी पट्टी में स्त्रियों, बच्चों, बूढ़ों और वंचितों के साथ सबसे अधिक हिंसा हो रही है. उन्होंने कहा कि साहित्य अपने समय में इस झूठ के खिलाफ एक जरूरी हस्तक्षेप है. वह नैतिकता की आभा है. वह सत्य कहता है रचता है पर अधूरे सच के साथ. वह अपने सच को भी संदेह की दृष्टि से देखता है. पिछले सौ साल का साहित्य साधारण की महिमा का बखान है. वह देशकाल में जन्म लेता है पर मनुष्य को देशकाल से मुक्त भी करता है. वह एक समय में कई समय में जीता है और जीवन तथा समाज को बहु-स्तरीय अर्थों में व्यक्त करता है. वह जिज्ञासा और प्रश्नाकुलता को बढ़ावा देता है. वह पक्षधरता, संवेदनशीलता, सौंदर्य और आनंद तथा रस की बात करता है. कार्यक्रम की अध्यक्षता सीएसडीएस की पत्रिका ‘प्रतिमान‘ के संपादक रविकान्त ने की. संचालन जानकी पुल ट्रस्ट की प्रबंध न्यासी रोहिणी कुमारी ने किया.