नई दिल्ली: इंडिया हैबिटेट सेंटर ‘दुनिया का सबसे बड़ा मेला- भारत की सिनेमाई विरासत का सम्मान’ की मेजबानी कर रहा है, जिसकी संकल्पना नेविल तुली ने की है. यह कार्यक्रम भारतीय सिनेमा के समृद्ध इतिहास के लिए एक असाधारण श्रद्धांजलि है, जो देश में फिल्म के विकास की एक आकर्षक यात्रा दर्शकों के सामने रखती है. प्रदर्शनी के माध्यम से दर्शक भारतीय सिनेमा को आकार देने वाले गहन सांस्कृतिक प्रभाव, उसकी कलात्मकता और उसके मील के पत्थरों के बारे में जान पा रहे हैं. प्रदर्शनी में कदम रखते ही दर्शकों का दृश्य प्रदर्शनों की एक लुभावनी शृंखला के साथ स्वागत किया जाता है जो भारतीय सिनेमा के विकास और प्रभाव की कहानी बताते हैं. तुली के विशाल संग्रह से 400,000 से अधिक सावधानी से चयनित वस्तुओं की विशेषता वाली, प्रदर्शनी में दुर्लभ फिल्म पोस्टर, पुरानी पुस्तिकाएं, मूल प्रचार सामग्री और सिनेमाई कला के अनूठे टुकड़े प्रदर्शित किए गए हैं. प्रत्येक प्रदर्शनी भारतीय और एशियाई सिनेमा की समृद्ध परंपराओं की झलक पेश करती है, जो भारतीय फिल्म उद्योग को आगे बढ़ाने वाली कलात्मक और सांस्कृतिक शक्तियों पर गहन नजर डालती है.
प्रदर्शनी का मुख्य आकर्षण विंटेज फिल्म पोस्टरों का प्रभावशाली संग्रह है, जिनमें से कई हाथ से पेंट किए गए हैं. ये पोस्टर न केवल भारतीय सिनेमा की दृश्य पहचान का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि बालीवुड के स्वर्ण युग से लेकर क्षेत्रीय सिनेमा की विविध परंपराओं तक, विभिन्न युगों की विकसित होती कलात्मक शैलियों को भी दर्शाते हैं. बोल्ड रंग और आकर्षक डिजाइन उन बदलती सौंदर्य संवेदनाओं को दर्शाते हैं, जिन्होंने वर्षों से भारतीय फिल्म को परिभाषित किया है. इन पोस्टरों के अलावा, प्रदर्शनी में भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग के दौरान फिल्म रिलीज के साथ आने वाली पुरानी पुस्तिकाओं का खजाना भी है. ये पुस्तिकाएं सिर्फ प्रचार के साधन नहीं हैं, बल्कि सांस्कृतिक कलाकृतियां हैं जो उन फिल्मों के सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भों में अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं, जिनका वे प्रतिनिधित्व करती हैं. उनके विस्तृत डिजाइन और कथाएं इस बात की गहरी समझ प्रदान करती हैं कि सिनेमा ने किस तरह भारतीय समाज को प्रतिबिम्बित और आकार दिया है. प्रदर्शनी में भारतीय इतिहास की कुछ सबसे प्रतिष्ठित फिल्मों की मूल प्रचार सामग्री और यादगार चीजें भी शामिल हैं. आगंतुक ‘मुगल-ए-आजम’, ‘पाकीजा’ और ‘शोले’ जैसी क्लासिक फिल्मों के पोस्टर, लाबी कार्ड और प्रचार तस्वीरें देख सकते हैं. ये आइटम डिजिटल युग से पहले फिल्म प्रचार में शामिल रचनात्मकता और शिल्प कौशल को दर्शाते हैं, जो पारंपरिक भारतीय फिल्म मार्केटिंग की दुनिया की एक दुर्लभ झलक पेश करते हैं.