रायपुर: “छत्तीसगढ़ की धरती आदिवासी संस्कृति और परंपराओं से समृद्ध है. जनजातीय समाज के लोग प्रकृति को करीब से समझते हैं और सदियों से पर्यावरण के साथ समन्वय बनाकर जीवन-यापन कर रहे हैं.” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आईआईटी भिलाई के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए यह बात कही. उन्होंने कहा कि आदिवासी भाई-बहन, प्राकृतिक जीवन-शैली के माध्यम से संचित किए हुए ज्ञान का भंडार हैं. इनको समझकर और उनकी जीवन-शैली से सीख लेकर, हम भारत के सतत विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं. लेकिन देश का सम्पूर्ण विकास तभी संभव है यदि हमारे जनजातीय भाई-बहनों की उसमें सक्रिय भागीदारी हो. राष्ट्रपति ने कहा कि यह सराहनीय है कि आईआईटी भिलाई आदिवासी समाज की प्रगति के लिए तकनीकी क्षेत्र में विशेष प्रयास कर रहा है. दीक्षांत समारोह का दिन उपलब्धियों से जुड़े गर्व को महसूस करने का दिन है. हर संस्थान और हर विद्यार्थी के लिए यह हर्ष का अवसर होता है. लेकिन कहीं न कहीं मन में परिसर की जिंदगी के खत्म होने और दोस्तों से दूर हो जाने का दुःख भी होता है.
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि आज का दिन आपके लिए खुद को यह याद दिलाने का भी दिन है कि आप एक जिम्मेदार नागरिक और एक सक्षम व्यक्ति के रूप में बाहर की दुनिया में प्रवेश करने के लिए तैयार हैं. मैं यह भी कहना चाहूंगी कि औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने का भले ही यहाँ अंत हो रहा हो, लेकिन अध्ययन करने और सीखने की इच्छा कभी भी समाप्त नहीं होनी चाहिए. राष्ट्रपति ने कहा कि यह आप सब के लिए सौभाग्य की बात है कि आपको भिलाई शहर में रहने और शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला, जो देश का एक बड़ा औद्योगिक केंद्र और शिक्षा का महत्त्वपूर्ण केंद्र है. स्वतंत्र भारत की यात्रा की शुरुआत के समय से ही देश के आधुनिक विकास में भिलाई की प्रभावी भूमिका रही है. राष्ट्रपति मुर्मु ने विश्वास जताया कि अपनी शिक्षा के दौरान आपने अवश्य इस क्षेत्र के बारे में विस्तार से ज्ञान अर्जित किया होगा और इसकी प्रभावशाली विकास यात्रा से प्रेरणा भी ली होगी. नए सपनों, नई सोच और नवीनतम तकनीकों के साथ यह संस्थान और इसके विद्यार्थी देश का नाम दुनिया में रोशन करेंगे.