अरुण चन्द l जागरण गोरखपुर: चार दशक में ही कैसे गोरखपुर ने अपराध और अनजाने डर के माहौल वाली अपनी पहचान बदलकर शिक्षा के बड़े केंद्र के तौर पर नई पहचान बनाई। उच्च शैक्षणिक संस्थानों में अब कैसे परंपरागत शिक्षा से आगे बढ़कर रोजगारपरक शिक्षा को महत्व दिया जा रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सकारात्मक पहलू को अपनाकर किस तरह रोजगार को बढ़ावा दिया जा सकता है और कैसे इस आधुनिक तकनीक के नकारात्मक पहलू से खुद को बचाकर समाज और देश की रक्षा की जा सकती है। मंच पर मौजूद दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.पूनम टंडन, मदनमोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जयप्रकाश सैनी और सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु की कुलपति प्रो. कविता शाह ने भरोसा दिलाया कि वे विद्यार्थियों को तकनीकी और रोजगारपरक शिक्षा देने के साथ ही उनमें संवेदना भी जागृत करने को लेकर सजग हैं। समाज का यह दौर ज्ञान के साम्राज्य के रूप में कैसे देखा जा रहा है, इसपर प्रकाश डालते हुए प्रो.पूनम टंडन ने कहा कि हमारा विश्वविद्यालय गोरखपुर समेत पूर्वांचल के समाज का अभिन्न अंग है। गोरक्षनगरी के साथ ही विश्वविद्यालय के विकास को भी एक साथ देखा जा सकता है। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो.कविता शाह ने कविता की दो लाइनों ‘यह न संभव की हर राह सीधी चले, यह न संभव की गंतव्य सबको मिले, वाटिका बीच कलियां लाख लगीं, यह न संभव हर फूल खिले’ से अपनी बात रखनी शुरू की। कहा कि यह सच है कि विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय लाना चुनौती है, लेकिन विश्वविद्यालय उनतक पहुंच रहा है। परिवहन को सुगम बनाया जा रहा है। इसमें कुलाधिपति आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का विशेष सहयोग मिला। एमएमयूटी के कुलपति प्रो.जेपी सैनी ने कहा कि चार दशक में गोरखपुर की पहचान भय और अपराध से बदलकर शिक्षा के केंद्र की हो गई है। अब यहां के विद्यार्थी उच्च, तकनीकी और रोजगारपरक शिक्षा के लिए दिल्ली, मुंबई और बंगलुरु जाने के लिए विवश नहीं हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर चर्चा शुरू हुई तो उन्होंने कहा कि तकनीक का अच्छा और खराब, दोनों ही इस्तेमाल है। हम इसका कैसे इस्तेमाल करते हैं, यह मायने रखता है। प्रो. पूनम टंडन ने प्रो.जेपी सैनी का समर्थन करते हुए कहा कि हमारा जोर बच्चों को रोबोट बनाना नहीं बल्कि उनमें मानवीय संवेदना भरने पर है। सत्र का संचालन गोरखपुर विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के डा. आमोद राय ने किया।