नई दिल्लीः 'अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा वर्ष' के अवसर पर साहित्य अकादमी 'अखिल भारतीय आदिवासी लेखक उत्सव' मना रही है. स्वागत भाषण  में अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2019 को अंतरराष्ट्रीय स्वदेशी भाषा वर्ष या अंतरराष्ट्रीय आदिवासी भाषा वर्ष घोषित किया है. एक अनुमान के अनुसार इस समय दुनिया की 6700 बोली जाने वाली भाषाओं में से 40 प्रतिशत भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं. भारत में लगभग 19,569 मातृभाषाएं बोली जाती हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार अगले 50 सालों में भारत में 1.3 बिलियन लोगों द्वारा बोली जा रही भाषाओं में आधे से अधिक भाषाएं लुप्त हो जाएंगी.आरंभिक वक्तव्य में संताली भाषा के संयोजक मदन मोहन सोरेन ने कहा कि भाषाओं के लिहाज से भारत दुनिया का दूसरा सबसे समृद्ध राष्ट्र है, लेकिन विकास की आधुनिक दौड़ ने भाषाओं को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचाया है. उद्घाटन वक्तव्य में प्रख्यात ओड़िया कवि एवं विद्वान डॉ सीताकांत महापात्र ने साहित्य अकादमी को इस आयोजन के लिए बधाई देते हुए कहा कि सभी आदिवासी भाषाएं अपनी ज़मीन और पर्यावरण से जुड़ी हुई होती हैं और उनमें ज्ञान की अनगिनत बातें छुपी हुई होती हैं. विशिष्ट अतिथि हलधर नाग ने संबलपुरी कोशली के कई लोकगीत प्रस्तुत किए और सभी लोगों से अपील की कि हमारे देश की भाषायी विविधता को बचाना बेहद आवश्यक है.

 

बीज वक्तव्य में प्रख्यात विद्वान एवं भाषाविद् डॉ. उदय नारायण सिंह ने दक्षिण एशियाई भाषाओं के संरक्षण हेतु यूनेस्को के साथ अपने कार्य को याद करते हुए कहा कि कई भारतीय भाषाओं के विलुप्त होने का ख़तरा सबसे ज़्यादा है.कार्यक्रम का प्रथम सत्र 'भारत की आदिवासी भाषाएं: विशिष्टता, मुद्दे, वर्तमान स्थिति एवं चुनौतियां' विषय पर केंद्रित था. कार्यक्रम की अध्यक्षता मिमि केविचुसा इजुङ ने की और शांता नाइक (बंजारा), महादेव टोप्पो (कुडुख़), सत्य नारायण मुंडा (मुंडारी), पूर्णचंद्र हेम्ब्रम (संताली), चंद्रमोहन हेब्रू (हो) ने आलेख-पाठ किए. कार्यक्रम का दूसरा सत्र कहानी-पाठ पर केंद्रित था. कार्यक्रम की अध्यक्षता केशरी लाल वर्मा ने की और प्रदीप कन्हर (कुई), के. सानी एलेक्ज़ेंडर (माओ), बीरबल सिंह (मुंडारी), शोभानाथ बेसरा (संताली) ने अपनी कहानियाँ प्रस्तुत कीं. आज का अंतिम सत्र कविता-पाठ को समर्पित था जिसकी अध्यक्षता बादल हेम्ब्रम ने की और कालिङ बोराङ (आदि), अंगम ज़तुंग चिरू (चिरू), पद्मिनि नाइक (हो), किशोर कोरा (कोरा), कलाचंद्र महाली (महाली), अशोक कुमार पुजाहारी (संबलपुरी-कोशाली), गागरिन शबर (शबर) ने अपनी कविताएँ प्रस्तुत कीं.