नई दिल्लीः उर्दू के नामचीन अदीब  क़ाज़ी अब्दुल सत्तार नहीं रहे. काजी अब्दुल सत्तार के निधन से उनके दिल्लीअलीगढ़ आवास ही नहीं बल्कि उनके चाहने वाले लोगों में भी खामोशी छायी है. पद्मश्री से सम्मानित इस लेखक का इंतकाल हिंदी-उर्दू की अदबी दुनिया और तरक्क़ीपसंद-जम्हूरियतपसंद तहरीक के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है. वे 87 वर्ष के थे. उनके उपन्यासों में से शब-गज़ीदा’, ‘दारा शिकोह’, ‘सलाहुद्दीन अयूबी’, ‘ख़ालिद इब्न-ए-वलीद’, ‘ग़ालिब’, ‘हज़रत जान’, ‘पीतल का घंटा’ आदि प्रसिद्ध हैं. उर्दू शायरी में क़ुनूतियात’ और जमालियात और हिन्दुस्तानी जमालियात’ उनकी आलोचनात्मक पुस्तकें हैं.

काजी अब्दुल सत्तार का जन्म 8 फरवरी 1933 को सीतापुर जनपद के गांव मछरेटा में जमींदार परिवार में हुआ था.  प्रेम, इतिहास एवं युद्ध के अतिरिक्त ग्रामीण जीवन पर उनकी गजब की पकड़ थी. वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में विभिन्न पदों पर रहने के बाद 1992 में सेवानिवृत्त हुए थे. उनके पिता काजी अब्दुल अली एवं माता आलिमा खातून के साथ-साथ उनके मामू एवं चाचा का भी उनकी परवरिश में योगदान था.
1950 में सीतापुर से इंटर पास करके वह लखनऊ विश्वविद्यालय पहुंचे. वहां से एमए करने के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शोध करने पहुंचे. उन्हें प्रो. रशीद अहमद सिद्दीकी जैसे विद्वान के निर्देशन में काम करने का मौका मिला. 1957 में उन्होंने उर्दू शायरी में कुनूतियतविषय पर शोध करके पीएचडी की डिग्री हासिल की. इसी दौरान उर्दू विभाग में प्रवक्ता नियुक्त हो गए. 1967 में रीडर एवं 1981 में प्रोफेसर बनाए गए. 1987 में विभाग के चेयरमैन बने और 1992 में सेवानिवृत्त हुए.
क़ाज़ी अब्दुल सत्तार साहब को पद्मश्री के अलावा ग़ालिब अवार्ड, मीर अवार्ड, यूपी उर्दू अकादमी अवार्ड, आलमी अवार्ड, पहला निशान-ए-सर सय्यद अवार्ड, बहादुर शाह ज़फ़र अवार्ड, दोहा (क़तर) का इंटरनेशनल अवार्ड, राष्ट्रीय इक़बाल अवार्ड और कई अन्य पुरस्कारों से नवाज़ा गया था. उन्होंने फरवरी 1982 में दिल्ली में हुए जनवादी लेखक संघ/अंजुमन जम्हूरियतपसंद मुसन्नफ़ीन के स्थापना सम्मेलन का उद्घाटन किया था. तब से वे संगठन के सदस्य और पदाधिकारी के रूप में लगातार जुड़े रहे और अंतिम समय तक जलेस को सक्रिय बनाए रखने में योगदान देते रहे. उनके निधन से सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया है. जनवादी लेखक संघ ने भी क़ाज़ी अब्दुल सत्तार के इंतकाल अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है. जागरण हिंदी की ओर से भी शब्दों की दुनिया की इस मशहूर शख्सियत को नमन.