नई दिल्ली: आज जिस तेजी से दुनिया बदल रही रही है उतनी ही तेजी से साहित्यक विधाओं की प्रकृति और सरंचना भी. इसी के मद्देनजर वाणी प्रकाशन और डॉ प्रभाकर सिंह बीएचयू के संयोजन में  'हिन्दी साहित्य का इतिहास अध्ययन की नई दृष्टि' व्याख्यान माला का आयोजन चल रहा है. 15 दिन में 15 व्याख्यान की योजना है, जिसमें शिलांग से लेकर राजस्थान तक और पंजाब से लेकर केरल तक के हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ विचारक, बौद्धिक प्राध्यापक रोज शाम 5 से 6 बजे वाणी प्रकाशन के सभी सोशल मीडिया  प्लेटफ़ॉर्म पर उपस्थित रहेंगे. प्रकाशन समूह का दावा है कि यह व्याख्यान माला साहित्य के इतिहास को जानने, परखने की एक सार्थक और जरूरी पहल है. हिन्दी साहित्य का इतिहास: अध्ययन की नई दृष्टि विषयक श्रृंखला का पहला व्याख्यान प्रो. सदानन्द शाही ने दिया.
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो और हिंदी के प्रख्यात चिंतक सदानन्द शाही का वक्तव्य आदिकाल पर केंद्रित था. उन्होंने कहा की आदिकालीन साहित्य  बहुरंगी और विविध वर्णी है.  भारत के मन को समझने की यह विविधता भरी दृष्टि ही आदिकाल को महत्त्व प्रदान करती है. आदिकाल में रासो साहित्य के साथ सिद्ध, जैन और नाथ साहित्य का आज के समय में अधिक महत्त्व है. वाणी प्रकाशन के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक अरुण माहेश्वरी ने इस व्याख्यान माला पर प्रसन्नता जाहिर की. बीएचयू  के डॉ प्रभाकर सिंह ने कहा कि हिंदी साहित्य के इतिहास को आचार्य शुक्ल के ढांचे से बाहर निकलना पड़ेगा. विशेष रुप से आदिकाल और भक्ति काल में जो विभिन्न काव्य धाराएं हैं जिनका विकास लगभग 1000 सालों का है उनका मुकम्मल इतिहास लिखा जाना चाहिए.