नई दिल्ली:  समाजशास्त्री अभय कुमार दुबे की पुस्तक  'हिंदू-एकता बनाम ज्ञान की राजनीति' का लोकार्पण इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुआ. वक्ताओं में राज्यसभा सदस्य राकेश सिन्हा, सतीश देशपांडे, रवीश कुमार, सोपान जोशी, अपर्णा वैदिक एवं अरुण महेश्वरी मौजूद थे. संघ विचारक सांसद राकेश सिन्हा ने कहा, "प्रो दुबे की इस पुस्तक में मुझे निहित जोखिम का अंदाज है, क्योंकि इस रचना में स्वाभाविक तौर पर संघ विरोधी खामिया उभर कर आयेंगी. लेखक ने यह जोखिम उठाया है. संघ को वामपंथियों को समझने में कठिनाई इसलिए होती है क्योंकि वे इसे दूर से देखते हैं. संघ को समझना है तो उसके नजदीक आना होगा. रवीश कुमार ने कहा, यह पुस्तक लेखक के दो साल से परिश्रम और दिमागी संघर्ष का परिणाम है. यह किताब एक गंभीर विमर्श की बात करती है. सोपान जोशी ने कहा, "इस पुस्तक में चीजों को समझने का सलीका है. ज्ञान की राजनीति की सुंदर समीक्षा इस पुस्तक में मिलती है. हम कह सकते हैं कि यह आंख की नमी का एक तरह का नियंत्रक है."

अपर्णा वैदिक ने कहा, "इस देश में हिंदुत्ववाद और मध्यमवाद दो विचारधाराएं हैं. प्रो दुबे की यह पुस्तक तीसरी विचारधारा है, जो हिंदुत्ववाद और मध्यमवाद दोनों विचारधाराओं पर प्रहार करती है. जब तक दलित और मुस्लिम का प्रश्न राष्ट्र का प्रश्न नहीं बनेगा तब तक ज्ञान की राजनीति नहीं हो सकती है." सतीश देशपांडे ने कहा, "यह पुस्तक खास चुनौती को रेखांकित करती है. विमर्श की दुनिया और व्यवहारिक राजनीति के विमर्श में गहरा फासला है. विमर्श की दुनिया को और पोषण की जरूरत है." इस पुस्तक के लेखक अभय कुमार दुबे ने कहा, "हिंदुत्ववाद जो आजादी के बाद हाशिए पर चला गया था वही  हिंदुत्ववाद आज अपने चरम पर है और मध्यमवाद आज हाशिए पर चला गया है. इस पुस्तक का मकसद दो विमर्शों  'हिन्दू एकता का विमर्श' और 'वामपंथी, सेकुलरवादी, मध्यमार्गी विमर्श' का विश्लेषण करना है." कार्यक्रम का आरंभ अरुण महेश्वरी वाणी प्रकाशन के वक्तव्य से हुआ. उन्होंने सीएसडीएस 'विकासशील समाज अध्यन पीठ' और वाणी प्रकाशन के बीच पिछले 18 वर्ष से चले आ रहे रचनात्मक सहयोग की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला . यह कार्यक्रम वाणी प्रकाशन और सीएसडीएस द्वारा सयुक्त रूप से आयोजित किया था.