हिंदी गीत-नवगीत के साधक वरिष्ठ गीतकार देवेंद्र शर्मा 'इंद्र' नहीं रहे. उन्होंने सात से भी अधिक समय तक हिंदी गीत नवगीत को बेहद निष्ठा भाव से सृजित किया. उनका मानना था कि साहित्‍य का सृजन करना और साहित्‍य को जीना, दोनों अलग-अलग बातें हैं. साहित्‍य को जीकर रचने वाला ही सच्‍चा साहित्‍य-साधक कहलाता है. उनके कुछ नवगीत कालजयी थे, जिनमें, 'मैं फिर उगूंगा, सांझ के आकाश में, मुझको विदा दो भोर का नक्षत्र हूं'; 'हम न सच्चे हुए, हम न झूठे हुए, कोरे कागज थे, काले अंगूठे हुए'; 'इतने भूषण लादकर, कविता हुई उदास'; 'छन्दोलंकृति, वक्रता और ललित अभिव्यक्ति, ये सब साधनमात्र हैं, साध्य सर्जना शक्ति'; 'वाणी पावन त्रिपथगा, युग तट भाव-विचार, जिसमें कवि की कल्पना, बहती बन रसधार'; 'भाषा में जब से मिला, बिम्बों का नेपथ्य, काव्यमंच पर नाचते, नंगे होकर तथ्य' जैसी सशक्त पंक्तियां शामिल हैं.
देवेंद्र शर्मा 'इंद्र' का जन्म आगरा जिले के नगला अकबरा में एक अप्रैल 1934 को हुआ था. उन्होंने हिंदी गीत-नवगीत सहित अनेक विधाओं में अपना महत्त्वपूर्ण और सशक्‍त उपस्थिति दर्ज कराई. लगभग इक्कीस हजार नए दोहों का सृजन करने वाले वरिष्‍ठ साहित्‍यकार देवेंद्र शर्मा 'इंद्र' के 13 नवगीत-संग्रह, चार दोहा-संग्रह, दो ग़ज़ल-संग्रह, दो खंड-काव्‍य एवं 17 संपादित समवेत संग्रहों समेत 50 से अधिक कृतियां प्रकाशित होने के साथ ही कुछ पांडुलिपियां प्रकाशन-पथ पर थीं. वह लंबे समय से बीमार थे, पर जब भी ठीक होते सृजन में जुट जाते. उनका खंडकाव्‍य 'कालजयी' आगरा विश्‍वविद्यालय के बी.ए. पाठ्‌यक्रम में सम्‍मिलित है तथा इसके अतिरिक्‍त उनके अनेक गीत-नवगीत विभिन्‍न विश्‍वविद्यालयों में पाठ्‌यक्रमों में सम्‍मिलित हैं. उनकी रचनाधर्मिता पर अब तक सात शोधकार्य हो चुके हैं. हिंदी साहित्‍य के ऐसे अद्‌भुत और बहु-आयामी रचनाकार को जागरण हिंदी की श्रद्धांजलि.