नई दिल्लीः ''हिंदी की राह में कठिनाइयां अवश्‍य हैं किन्‍तु उसका भविष्‍य उज्‍ज्वल है. आज बहुत से ऐप आ गये हैं, तकनालॉजी के नए क्षेत्र खुल रहे हैं, जिसके माध्‍यम से हम हिंदी को फैला सकते हैं.'' यह बात नीदरलैंड्स में भारत के राजदूत प्रदीप कुमार रावत ने 'हिंदी की वैश्‍विकता' पर आयोजित परिचर्चा में कही. वे इस ऑनलाइन परिचर्चा की अध्यक्षता कर रहे थे. उन्‍होंने कहा, ''भाषा संस्‍कृति के लिए जरूरी है. हमारी भारतीयता हमारी भाषाओं  के कारण महत्त्व रखती है. बाजार या आर्थिक कारणों से हिंदी के बढ़ने की एक वजह यह भी है कि हिंदुस्‍तान में यदि विदेशियों को काम करना है, तो उन्‍हें अंग्रेजी के अलावा हिंदी भाषा सीखनी होगी.रावत ने बताया कि जब वे विज्ञान पढ़ कर इंजीनियरिंग कक्षा में गए तो अंग्रेजी में पढ़ाई होने के कारण बहुत सी बातें समझ में ही नहीं आ रही थीं, तो यह विडंबना प्रारंभ में होती है. उन्‍होंने कहा कि हिंदी के प्रचार प्रसार की दिशा में देश के बुनियादी कारणों को समझना होगा. उन्‍होंने कहा, ''आज साहित्‍य की क्‍वालिटी उच्‍च स्‍तर की है. इसे पढ़ने के लिए लोग हिंदी सीखना चाहेंगे. अच्‍छा साहित्‍य ही लोगों को हिंदी पढ़ने के लिए प्रेरित करेगा. दूसरा क्षेत्र है मनोरंजन. बहुत से लोग हिंदी के गाने गाते हैं पर उसका अर्थ नहीं जानते. हम उन्‍हें ध्‍यान में रखें. यह उन्‍हें हिंदी से जोड़ने के लिए आवश्‍यक है.उन्‍होंने कहा कि यहां मैंने देखा है कि डच व्‍यक्‍ति आपस में मिलते हैं तो डच में ही बोलते हैं. वैसा ही हिंदी भाषियों को करना चाहिए कि वे आपस में मिलें तो हिंदी बोलें. इससे भाषा का विस्‍तार होगा. हिंदी की जड़ें मजबूत होंगी.

गोष्‍ठी में देश-विदेश में अनेक विद्वानों से शिरकत की तथा हिंदी की विश्‍वव्‍यापी पहचान को रेखांकित किया. कार्यक्रम का संयोजन नीदरलैंड्स राजदूतावास में गांधी सांस्‍कृतिक केंद्र के प्रभारी निदेशक शिवमोहन सिंह ने किया. उन्होंने परिचर्चा की शुरुआत में बताया कि आजादी के अमृत महोत्‍सव के तहत नीदरलैंड्स में हिंदी एवं भारतीय संस्‍कृति के प्रचार प्रसार की दिशा में दूतावास काफी काम कर रहा है. कार्यक्रम संचालक कवि, आलोचक एवं भाषाविद डॉ ओम निश्‍चल ने कहा कि यह भारतीय संस्‍कृति एवं सभ्‍यता का महोत्‍सव भी है. अपने आधार वक्‍तव्‍य में अटल बिहारी वाजपेयी विश्‍वविद्यालय भोपाल के कुलपति प्रो रामदेव भारद्वाज ने हिंदी की विकास यात्रा का एक विशद परिचय दिया. उन्होंने कहा कि हिंदी साहित्‍य और संस्‍कृति की भाषा से लेकर आज ज्ञान-विज्ञान की भाषा बन चुकी है. अब जरूरत है इसके इस स्‍वरुप को मान्‍यता देने और इसके व्‍यापक उपयोग की. उन्‍होंने बताया कि अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्‍वविद्यालय भोपाल में तकनीकी शिक्षा के लिए हिंदी का उपयोग किया जा रहा है. कार्यक्रम के मुख्‍य अतिथि जानेमाने लेखक डॉ रामदरश मिश्र थे. उन्होंने कहा कि हिंदी को विदेश में इतना महत्त्व दिया जा रहा है, यह जानकर बहुत प्रसन्‍नता हो रही है. प्रवासी लेखकों ने हिंदी को अपने लेखन से जिंदा रखा है तथा इस माध्‍यम से पूरे विश्‍व में भारतीय संस्‍कृति बची हुई है. उन्‍होंने हिंदी की वैश्‍विकता के परिप्रेक्ष्‍य में आयोजित इस संगोष्‍ठी को अपना आशीर्वाद दिया.