हिंदी कहानी में आधुनिकता का बोध लाने वाले कथाकार निर्मल वर्मा की आज जयंती है. उनका जन्म 3 अप्रैल, 1929 को शिमला में हुआ. हालांकि उनकी भाषा व समझ पर सेंट स्टीफेंस कॉलेज दिल्ली का बड़ा हाथ था, जहां से उन्होंने इतिहास में एमए किया, पर उनकी कथात्मकता में पहाड़ी शहर शिमला की छाप साफतौर पर दिखाई देती है. इसकी वजह है उनका बचपन, जिसके एकाकी क्षणों के अनुभव को निर्मल वर्मा जीवनभर न केवल महसूसते रहे, बल्कि उनके लेखन में भी यह झलकता रहा. इसीलिए उनकी कथाओं पर मनुष्य के मनुष्य से, और स्वयं अपने से अलगाव की प्रक्रिया दिखाई देती है. उनके जीवन का खासा समय विदेश-प्रवास में बीता. वह प्राग, चेकोस्लोवाकिया के प्राच्य विद्या संस्थान और चेकोस्लोवाक लेखक संघ के बुलावे पर सात वर्ष तक चेकोस्लोवाकिया में रहे और कई चेक कथाकृतियों का अनुवाद किया. कुछ वर्ष लंदन में रहे और भारत के एक बड़े अखबार के लिए वहां की सांस्कृतिक-राजनीतिक समस्याओं पर लेख और रिपोतार्ज लिखे.
उनकी चर्चित कृतियों में उपन्यास वे दिन, लाल टीन की छत, एक चिथड़ा सुख, रात का रिपोर्टर, अन्तिम अरण्य; कहानी-संग्रह परिंदे, जलती झाड़ी, पिछली गर्मियों में, बीच बहस में, मेरी प्रिय कहानियां, प्रतिनिधि कहानियां, कव्वे और काला पानी, सूखा तथा अन्य कहानियां, ग्यारह लम्बी कहानियां, दस प्रतिनिधि कहानियां; यात्रा संस्मरण, डायरी, पत्र में चीड़ों पर चांदनी, हर बारिश में, धुंध से उठती धुन, प्रिय राम, सर्जना पथ के सहयात्री; निबंध शब्द और स्मृति, कला का जोखिम, ढलान से उतरते हुए, भारत और यूरोप: प्रतिश्रुति के क्षेत्र, इतिहास स्मृति आकांक्षा, शताब्दी के ढलते वर्षों में, आदि, अन्त और आरम्भ, दूसरे शब्दों में; नाटक तीन एकान्त; संचयन दूसरी दुनिया; अनुवाद कुप्रिन की कहानियां, रोमियो जूलियट और अँधेरा, टिकट संग्रह, इतने बड़े धब्बे, झोंपड़ीवाले, बाहर और परे, बचपन, आर यू आर, एमेके एक गाथा आदि शामिल है. निर्मल वर्मा को उनके सृजन कर्म के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, साधना सम्मान, उ.प्र. हिन्दी संस्थान का राममनोहर लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान, मूर्तिदेवी पुरस्कार तथा ज्ञानपीठ पुरस्कार सहित कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा जा चुका है.