नई दिल्लीः हिंदी- उर्दू के चर्चित शायर, अनुवादक रोशन लाल 'रौशन' नहीं रहे.  4 जनवरी, 1954  को पश्चिमी चम्पारन के बेतिया में उनका जन्म हुआ था. वह एक उम्दा गजलगो थे. उर्दू-हिंदी की पत्रपत्रिकाओं में अकसर उनकी रचनाएं छपती रहती थीं.  साल 2010 में 'हमारी बस्ती में' नाम से उनका ग़ज़ल-संग्रह प्रकाशित हुआ. बाद में संवेद ने 'समय संवाद करना चाहता है' नाम से उनकी गजलें छापीं. उन्होंने आलोचना, समीक्षा और निबन्ध भी लिखे और हास्य-व्यंग्य में भी हाथ आजमाया. हंगेरियाई भाषा से हिन्दी में अनुवाद भी किए. उनके निधन से उर्दू-हिंदी शायरी जगत और सोशल मीडिया पर उनके प्रशंसकों में शोक छा गया.
श्रद्धांजलि स्वरूप रोशन लाल 'रौशन' की एक गजल

रुह जब बे-लिबास होती है
नग्नता देह-देह रोती है

ज़िन्दगी मौत के मरुथल के
वासनाओं के बीज बोती है

दिल में कुछ और शब्द होते हैं
लब पे कुछ और बात होती है

मूल्य बाज़ार में भटकते हैं
चेतना सूलियों पे सोती है

मेरी आँखों गिरे तो पानी है
तेरी आँखों का अश्क मोती है