इंदौर: प्रख्यात कवि माणिक वर्मा नहीं रहे. मध्य प्रदेश के हरदा निवासी माणिक वर्मा इंदौर में रहते थे. तबीयत खराब होने के बावजूद भी वह जीवन के आखिरी समय तक कविताओं को लेकर  लगातार सक्रिय बने रहे. माणिक वर्मा अपने व्यंग्य के जरिए हमेशा मंचों की शान रहे. अभी कुछ समय पहले ही उन्होंने राइटर्स क्लब के मंच पर कविता पाढ़ किया था. उनकी कविताओं में शामिल व्यंग्य हमेशा सच्चाई की तरफ इशारा करते रहे. उनके निधन पर हिंदी जगत ने गहरा शोक जताया. लखनऊ में विपुलम संस्था के अध्यक्ष व दूरदर्शन के वरिष्ठ कार्यक्रम अधिशासी आत्म प्रकाश मिश्र के अनुसार माणिक वर्मा को जब विपुलम सम्मान 2011 से सम्मानित किया गया था, तो उनके मौलिक लेखन और कविताओं में श्रोता देर रात तक डूबे रहे थे. उनके चले जाने से शिष्ट हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में बड़ा नुकसान हुआ है. वरिष्ठ व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी कहते हैं कि नई दिल्ली में उन्होंने परंपरा नाम की साहित्यिक संस्था का गठन किया था. जिसके जरिये कई रचनाकार सक्रिय रहे. वह मौलिक रचनाकार थे, उनका लेखन अनुकरणीय है. वह दलगत और साहित्यिक राजनीति से अलग थे.

 

अशोक चक्रधर, प्रेम जनमेजय, राकेश पांडेय, राहुल देव, विनोद अग्निहोत्री, ललित मंडोरा, धीरेंद्र अस्थाना, चित्रा देसाई, प्रज्ञा पांडे, निर्मला भुराड़िया जैसे साहित्यकारों, पत्रकारों ने भी उनके निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है. गज़लकार कुंअर बेचैन ने अपनी फ़ेसबुक पोस्ट के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि- "माणिक वर्मा व्यंग्य के और ग़ज़ल के अप्रतिम हस्ताक्षर थे. मंच पर उनका होना मंच को गरिमा और श्रोताओं को उल्लास प्रदान करता रहा. उनके साथ काव्यपाठ करने का मुझे भी कम से कम सौ डेढ़ सौ बार तो अवसर मिला ही होगा. वे सहृदय, संवेदनशील, सहज-सरल साहित्यकार थे. मेरे प्रति उनका सहज स्नेह था. उनके चले जाने से शिष्ट हास्य-व्यंग्य के क्षेत्र में एक अपूरणीय रिक्तता आ गई है. उनके चले जाने की सूचना पाकर बहुत दुखी हूं. ईश्वर की मर्ज़ी में किसका दखल चलता है. अब तो यही प्रार्थना है कि प्रभु उनकी आत्मा को अपने चरणों मे स्थान दें और समस्त परिजन को एवं मित्रों को इस गहरे दुख को सहन करने की शक्ति प्रदान करें."पत्रकार व व्यंग्यकार अनूप श्रीवास्तव का कहना था कि उन्हें 1998 के अट्टाहास सम्मान से नवाजा गया था. पहली बार लखनऊ महोत्सव में उन्होंने मांगी लाल कविता पढ़ी थी. उन्होंने माणिक वर्मा सम्मान की शुरुआत की थी. हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने बताया कि माणिक वर्मा दर्जनों बार लखनऊ आये. उनकी कविता मांगी लाल ने लोकप्रियता के आयाम स्थापित किए.