'अद्भुत सहनशीलता और भयावह तटस्थता है इस देश के आदमी में. कोई उसे पीटकर पैसे छीन ले तो वह दान के मंत्र पढ़ने लगता है'. इन और इस जैसी अनगिन चुटीली पंक्तियों के लेखक हरिशंकर परसाई की आज जयंती है. उनका जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के जमानी में 22 अगस्त, 1924 को हुआ था. वह हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार थे. वह हिंदी के पहले ऐसे रचनाकार हैं, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा. 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ और आदर्शवादिता चरम पर थी, तब भी उन्होंने शोषण की सच्चाई को न केवल देखा बल्कि लिखा भी. उन्होंने नौकरी छोड़ी और लेखन को आजीविका का साधन बनाया ताकि सच लिखते रह सकें. हरिशंकर परसाई की पहली रचना 23 नवंबर, 1947 को प्रहरी में 'पैसे का खेल' शीर्षक से प्रकाशित हुई. कुछ लोग मई 1948 में प्रहरी में ही छपी 'स्वर्ग से नरक' को उनकी पहली रचना बताते हैं.
हरिशंकर परसाई ने इतना कुछ लिखा कि उनके समस्त लेखन को ही 'परसाई साहित्य' का नाम दे दिया गया. उन्होंने धोखा, सदाचार का ताबीज, भीतर के घाव, भूख के स्वर और स्मारक, जिंदगी और मौत, दुःख का ताज, क्रांतिकारी की कथा, पवित्रता का दौरा, भोलाराम का जीव, ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड, यस सर, वह जो आदमी है न, शर्म की बात पर ताली पीटना और इंस्पेक्टर मातादीन जैसे बेहद चर्चित और लोकप्रिय व्यंग्य लिखे. परसाई ने जबलपुर से 'वसुधा' नामक साहित्यिक मासिकी भी निकाली. वह नई दुनिया में 'सुनो भइ साधो', नयी कहानियां में 'पांचवां कालम' और 'उलझी–उलझी', कल्पना में 'और अंत में' नामक स्तंभ के अलावा अखबार देशबंधु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देने लगे. उनके इस स्तंभ का नाम 'पारसी से पूछें' था, जिसमें पहले तो हल्के, इश्किया और फिल्मी सवाल पूछे गए, पर परसाई जी के चुटीले उत्तरों ने लोगों को गंभीर सामाजिक, राजनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय प्रश्नों की ओर प्रवृत्त किया.
परसाई गरीबों के पक्ष में, धार्मिक रूढ़ियों और भ्रष्टाचार के विरुद्ध आम आदमी के पक्ष में खड़े होने वाले व्यंग्यकार थे. उनकी लेखनी में तलवार सी धार थी. परसाई की प्रमुख प्रकाशित रचनाओं में कहानी संग्रह: हंसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव; उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल; संस्मरण: तिरछी रेखाएं; लेख संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पांव पीछे, बेइमानी की परत, अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचंद के फटे जूते, माटी कहे कुम्हार से, काग भगोड़ा, आवारा भीड़ के खतरे, ऐसा भी सोचा जाता है, वैष्णव की फिसलन, पगडंडियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम एक उम्र से वाकिफ हैं, काफी चर्चित रहीं. बाद में राजकमल प्रकाशन ने छह खंडों में परसाई रचनावली भी प्रकाशित की. हमारे दौर के सर्वाधिक चर्चित व्यंग्यकारों में से एक हरिशंकर परसाई को 'विकलांग श्रद्धा का दौर' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था.
जागरण हिंदी की ओर से हिंदी व्यंग्य विधा के अग्रणी हस्ताक्षर हरिशंकर परसाई की जयंती पर नमन!प