नई दिल्लीः अनुगूँज साहित्यिक सँस्था ने कारगिल विजय दिवस और अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के उपलक्ष्य में त्रिदिवसीय त्रिभाषी कार्यक्रम आयोजित किए. ऑनलाइन राष्ट्रीय उर्दू मुशायरा, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी कवि सम्मेलन और अंग्रेजी में ऑनलाइन पोएट्री सेशन जहां बाघ संरक्षण पर सामाजिक चेतना का संदेश लिए थे वहीं शहीदों  की स्मृति को नमन किया गया. ऑनलाइन मुशायरा कार्यक्रम की अध्यक्षता शायरा डॉ अम्बर आबिद ने की. मुख्य अतिथि के रूप में डॉ कृष्ण कुमार 'बेदिल', 'अंबर' खरबंदा और डॉ यास्मीन मुमल उपस्थित रहे. कार्यक्रम का संचालन अमरीक सिंह अदब ने किया. डॉ कृष्ण कुमार 'बेदिल' ने सुनाया, 'समायी जिसमें कितनी क़ौम, मज़हब और तहज़ीबें, हमारे मुल्क की दुनिया में एक पहचान है यारों. हैं जिसमें फूल कितने मुख्तलिफ रंगों के खुश्बू के, वो गुलदस्ता हैं जिसका नाम हिंदुस्तान है यारो.' 'अंबर' खरबन्दा ने इन पंक्तियों से शहीदों को नमन किया, 'हज़ार यूँ तो ज़माने में दास्तानें हैं, ये दास्तान है ऊंची हर इक फ़साने सेवो क़ौम जिसको मिला तुझसा जां-निसारे-वतन, वो क़ौम मिट नहीं सकती कभी मिटाने से, सलाम तेरी शहादत को ऐ शहीदे-वतन, सलाम तेरी शुजाअत को ऐ शहीदे-वतन.

मुशायरे में शायरा सरवत बानो ने ये पंक्तियाँ सुनाईं, 'ज़माने की रिवायत से मुझे आज़ाद कर डालो, ये जंजीरें मुझे खुल कर कभी जीने नहीं देतीं.' डॉ अंबर आबिद की इन पंक्तियों ने हिंदी और उर्दू के फासले को कम कर दिया, 'मिरे सर पे रहे, आंचल तिरी बिंदी सलामत हो, फले फूले इधर उर्दू, उधर हिंदी सलामत हो.' अमरीक सिंह 'अदब' ने सुनाया, 'लिखी है ख़ून-ए जिगर से दास्ताँ अपनी! लहू ये सुर्ख़ 'अदब' कुछ  तो रंग लाएगा!' विजय भोला ने शहीद के पिता की व्यथा इन शब्दों में व्यक्त की, 'कितनी मिन्नतों के साथ पाया था जिसे, कितनी चाहतों के साथ पाला था जिसे, इन बूढ़े लाचार बेबस काँधों पर आज उसी की लाश को ढो कर आया हूँ.' अब्दुल हक़ सहर मुजफ्फरनगरी ने सुनाया, 'इक सुकूं मिलता है दिल को मान से सम्मान से, आदमी जीवन गुज़ारे बाघ जैसी शान से. निछावर जान कर दूंगा वतन पर, मुझे जब वक्त का आदेश होगा.

संकल्प जैन ने सुनाया, 'हम रोज़ बनाते हैं गाथा तुम पढ़ते रोज़ कहानी को, इतिहास बनाना आता है हर इक इक हिंदुस्तानी को.' कार्यक्रम की संयोजिका और अनुगूँज की संस्थापक कवयित्री निवेदिता चक्रवर्ती ने सैनिक की स्मृति में उसकी माँ का चित्र कुछ यूँ खींचा, 'अब भी रोटी का पहला कौर गटकते हुए तेरी आँख टपकती होगी, माँ, तब तू कैसी दिखती होगी. कार्यक्रम में डॉ यास्मीन मुमल और हाशिम देहलवी ने बहुत अच्छी शायरी सुनाई.