नई दिल्लीः प्रख्यात गुजराती कवि विनोद जोशी का कहना है कि हम जन्म से दो चीजें लेकर आए हैं भाषा और लैंगिक समानता. ट्रांसजेंडर कोई दूसरे नहीं है हमारे अपने हैं. जोशी ने यह बात साहित्योत्सव में ट्रांसजेंडर कवि सम्मिलन के दौरान कही. विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष चंद्रशेखर कंबार ने कहा कि समाज ट्रांसजेंडर को अलग दृष्टि से देखता है लेकिन साहित्य में अनेक स्वर सुनाई देते हैं. उन्होंने उम्मीद जताई की यह वर्ग भी कविता और साहित्य की अन्य विधाओं के माध्यम से समाज की अवधारणा को बदल सकेगा. इस अवसर पर बांग्ला कवि पार्थसारथी मजूमदार ने अपनी मूल बाङ्ला कविताओं के हिंदी अनुवाद का पाठ किया. उनकी लालच कविता में 'पृथ्वी का सबसे पुराना लालच इंसान को दबाए रखने' का भाव उभर कर आया. हिंदी कवि रेशमा प्रसाद ने 'मैं किन्नर हूं' शीर्षक से कविता का पाठ किया. उनकी कविता ने मर्मस्पर्शी रही.  उनकी कविता कुछ यूं थी,  ''संघर्ष है वजूद का, संघर्ष है सम्मान का, मैं किन्नर हूं, मुझको आजादी का झंडा वापिस कर दो''. ओड़िया कवि मीरा परिडा  सामाजिक चिंतन की बात पर क़ायम रहीं. मराठी कवि दिश शेख़ ने कविता में समाज को उलाहना देते हुए कहा कि ''हमारे हजार वर्षों के शोषण चित्र दिखते नहीं क्या, तुम्हारे चेहरे पर पशु की क्रूरता झलकती है. मुझे तुम्हारे सामने हाथ पसारने की जरूरत नहीं''. मलयालम कवि विजयराजमल्लिका ने लोरी कविता के माध्यम से वात्सल्य भाव को प्रस्तुत किया. उनकी कविता ने किन्नर बच्चे की पीड़ा का भी ज़िक्र किया.
ओड़िया कवि साधना मिश्र ने अपनी भावनाओं को कविता में इस तरह उकेरा, ''रामायण ने बोला किन्नर, महाभारत ने बोला शिखंडी, विष्णुपुराण ने बोला अर्द्धनारिश्वर.' उन्होंने कविता-पाठ क्रम को जारी रखते हुए 'अदृश्य हाथ' शीर्षक से कविता का वाचन किया, 'अकेले अकेले होते हैं तो कभी-कभी अकेला नहीं होता, वो अदृश्य हाथ हमारे साथ होते हैं.' हिंदी कवि धनंजय चौहान कविता-पाठ से पूर्वअपने जीवन की समस्याओं को बयां करते हुए कहा कि जीवन और समाज में हमारा अस्तित्व संध्या की तरह है. हम सब आत्माएं हैं और आत्मा को स्त्री-भाव से संबोधित करते है. समय के साथ धीरे-धीरे बदलाव हुए है लेकिन हमारा संघर्ष जारी है. उन्होंने ट्रांसजेंडर समुदाय के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर भी कविता-पाठ किया. सत्र की अध्यक्ष बांग्ला कवि मानवी बंद्योपाध्याय ने की. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि ट्रांसजेंडर का कोई माझी नहीं वो बहुत अकेला है, लेकिन वे अपने अधिकारों के लिए निरंतर संघर्षरत हैं.  इस अवसर पर उन्होंने अपनी बाङ्ला कविताओं का हिंदी अनुवाद का भी पाठ किया. शुरुआत में साहित्य अकादेमी सचिव के. श्रीनिवासराव ने कहा कि साहित्य जीवन और प्रकृति को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है. उन्होंने कहा कि लेखक, लेखक होता है, उसे उम्र, महिला-पुरुष और अन्य किसी तरह से विभाजित नहीं किया जा सकता. याद रहे कि साहित्य अकादेमी ने 2018 से ट्रांसजेंडर कवि-सम्मेलन की शुरुआत की थी. इस अवसर पर साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशनाधीन ट्रांसजेंडर कविता संचयन और सार्क देशों के ट्रांसजेंडर लेखकों का ऑनलाइन सम्मेलन करने की बात भी कही गई.