नई दिल्लीः दिल्ली विश्वविद्यालय का हंसराज कॉलेज हिंदी साहित्य से जुड़ी परिचर्चाओं के आयोजन में काफी आगे है. इस बार 'हंसराज संवाद' के अंतर्गत संगोष्ठी का विषय था, 'उपन्यास समीक्षा और परिचर्चा'. इस कार्यक्रम में हिंदी और साहित्य से जुड़े दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ ही अन्य साहित्यप्रेमी छात्र व शोधार्थी तो जुटते ही हैं, विषय विशेषज्ञ, नामी कथाकार, कवि और प्राध्यापक भी हिस्सा लेते हैं. इसकी शोहरत का अंदाज इससे भी लगाया जा सकता है कि इस कार्यक्रम में शामिल दिल्ली विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर अनुराधा गुप्ता ने बाकायदा फेसबुक पोस्ट लिख कर इस आयोजन में शामिल युवा प्रतिभागियों के उत्साह, दृष्टि सम्पन्नता, फ़ोकस व साहित्य की समझ की सराहना की और लिखा कि वे इस आयोजन से अभिभूत भी हैं और आश्वस्त भी. हंसराज कॉलेज की यह पहल स्वागतयोग्य है. युवा प्रतिभाओं पर भरोसा व उनके हाथ में संचालन देना हर क्षेत्र में जरूरी है. इस परिचर्चा की रेंज 'देवरानी जेठानी की कहानी' से लेकर 'फ़सक' तक थी. कई महत्त्वपूर्ण उपन्यासों पर चर्चा ने कई जरूरी प्रश्न उठाए. जैसे कैसे 'गोदान' की गाय अब 'फसक' की गाय से जुदा है, आज के इस क्रूर सच पर डॉ. प्रेम तिवारी जी ने महत्त्वपूर्ण बात की.
अनुराधा गुप्ता के मुताबिक, "मेरी समझ में यथार्थ जब इतना जटिल व बहुआयामी हो, समय इतनी तेजी से जब बदल रहा हो, तब 'गोदान' जैसा महाख्यान रचना आज के रचनाकार के लिए बेहद मुश्किल है. जिस तरह प्रेमचंद के पास वर्तमान की तस्वीर के साथ भविष्य का नक्शा था, वैसा भविष्य का नक्शा आज के लेखक के पास होना सम्भव नहीं है. जब झूठ इतनी विपुलता और शातिराना तरीके से सच की शक्ल में तब्दील होकर फैलाया जा रहा हो, तब झूठ और सच के बेहद बारीक और लगभग अदृश्य फ़र्क को समझ कर सच को चिन्हित कर पाठकों के सामने ला पाना और उन्हें कथारस के साथ कन्विंस कर ले जाना आज के लेखक के सामने बेहद चुनौतीपूर्ण काम है, बशर्ते लेखक उसे चुनौती के रूप में ले रहा हो, शगल के तौर पर नहीं." इस कार्यक्रम में प्रो कैलाश नारायण तिवारी, डॉ प्रेम तिवारी, राकेश तिवारी व हंसराज कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ राजेश शर्मा, डॉ जाहिदुल दीवान, डॉ गरिमा सहित शोधार्थियों व विद्यार्थियों ने भी अपने विचार रखे.