नई दिल्ली: भारत के स्वंतत्रता दिवस के अवसर पर साहित्य अकादमी ने पैनल चर्चा का आयोजन किया. पैनल चर्चा का विषय था 'स्वतंत्रता, संविधान और साहित्य'. अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने स्वागत और आभार वक्तव्य के साथ ही विषय प्रवर्तन भी किया. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता दरअसल उस वातावरण को तत्पर भाव से बनाए रखने का नाम है जिससे व्यक्ति को अपने आत्म-विकास का अधिकतम सुअवसर प्राप्त हो सके. भारतीय संविधान ने 'विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता को व्यक्तियों तथा राष्ट्र के आत्मिक उत्कर्ष के लिए आवश्यक माना है और उनका प्रस्तावना में आश्वासन दिया है. संविधान द्वारा प्रतिभूत सबसे पहली स्वतंत्रता वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. स्वतंत्रता के अध्याय में इसे शीर्षस्थ स्थान देना इस बात का प्रमाण है कि यह लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की आधार शिला है. इसे 'चतुर्थ कला' भी कहा गया है. उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम में ऐसे विभिन्न अनुशासनों के विद्वानों को आमंत्रित किया है जिससे कि उनके विशेष अनुभवों के सहारे स्वतंत्रता, संविधान और साहित्यविषय के अनेक आयामों पर प्रकाश पड़ सके. सिक्किम के पूर्व राज्यपाल और प्रख्यात लेखक बीपी सिंह ने भारतीय स्वतंत्रता आदोलन के वैचारिक आधार को रेखांकित करते हुए लोकमान्य तिलक के 'गीता रहस्य' का उल्लेख किया और कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय ज्ञान परंपरा मुखरित थी.
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय के कुलपति, लेखक एवं पत्रकार बल्देव भाई शर्मा ने कहा कि भारत का इतिहास गुलामी का इतिहास नहीं बल्कि सतत संघर्षों का इतिहास है. उन्होंने कहा कि भारत की कोटि-कोटि जनता ने स्वतंत्रता को अपना सर्वोच्च आदर्श माना था इसीलिए वे इसे प्राप्त करने के लिए बलि वेदी पर चढ़ जाने से भी नहीं चूके. उन्होंने कहा कि हमारा संविधान स्वतंत्रता को एक अधिकार के रूप में मान्यता देता है लेकिन किसी अन्य के अधिकारों का अतिक्रमण करने की कतई छूट नहीं देता. उन्होंने ऋग्वेद, रामचरितमानस और जयशंकर प्रसाद तथा मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं के द्वारा साहित्य की मूल चेतना को रेखांकित किया. कथाकार और विदुषी चित्रा मुद्गल ने कहा कि लेखक शोषित, पीड़ित जनता के संघर्षों को अभिव्यक्त करता है लेकिन स्वतंत्रता का मतलब उच्छृंखलता नहीं है इसलिए लेखक को बहुत सतर्क और संवेदनशील होकर संविधान सम्मत विचारों को अभिव्यक्त करना चाहिए. स्वतंत्रता एक नैतिक दायित्व है. उन्होंने कहा कि साहित्य दरअसल जन संघर्षों का इतिहास है. भारतीय अंग्रेजी कवयित्री सुकृता पॉल कुमार ने रचनाकार की स्वतंत्रता और रचना के भीतर पात्रों के स्वातंत्र्य को अपने वक्तव्य में व्याख्यायित किया. प्रख्यात गुजराती कवि और चित्रकार प्रबोध पारिख, विख्यात समालोचक और उत्कल विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर जतिन नायक, चर्चित भारतीय अंग्रेज़ी कवि और टाटा इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर अश्विनी कुमार, पत्रकार प्रभात शुगलू ने भी अपने विचार व्यक्त किए. भारतीय संविधान को कविता में प्रस्तुत करने वाले कवि एवं दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर एस.के. गौतम ने अपने वक्तव्य के साथ ही 'संविधान काव्य' के कुछ पद प्रस्तुत किए. संचालन अकादमी में संपादक हिंदी अनुपम तिवारी ने किया.