भोपालः अगर आपमें कुछ करने की ललक हो तो आप किसी भी हाल में अपनी कला को चमका सकते हैं. गोंड समुदाय के युवा चित्रकार सुखीराम मरावी इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. अभी मध्य प्रदेश जनजातीय संग्रहालय के 'लिखन्दरा दीर्घा' में मरावी के चित्रों की प्रदर्शनी लगी है, और उसे बेहद सराहा जा रहा है. सुखीराम मरावी कथानुरूप चित्राकंन में खुद को बेहतर रूप से परिभाषित करते हैं. जिसमें चित्रित आकृतियां एक अलग दृष्टिकोण से कथा कहते दिखती हैं. मरावी अपने चित्रों में चटक रंगों की भूमि को बिंदुओं एवं लकीरों से भर कर उन्हें त्रिआमी अनुभुति देते हैं. उनके परिवेश, वन सम्पदा एवं जीव-जंतु भी अपना स्थान पाते हैं और उन आकारों में वे चटक और श्वेत-श्याम रंगों से भरकर चित्रों का सृजन करते हैं. उनकी चित्रकला में साजा वृक्ष, हिरन, मोर, शेर, हाथी, गाय, बैल, पक्षियों और समूहों का सृजन चित्रण शलाका 6 की प्रदर्शनी दीर्घा में प्रस्तुत की गई है. सुखीराम मरावी पिछले ग्यारह वर्षों में देश के अलग-अलग शहरों में आयोजित अनेक चित्र शिविरों और समूह प्रदर्शनियों में भागीदारी की हैं.
गोंड समुदाय के सृजनशील युवा चित्रकार सुखीराम मरावी राज्य में डिंडौरी के ग्राम भुसंडा में जन्में और बहुत कम उम्र में ही शैक्षणिक शिक्षा के साथ-साथ चित्रकला का कार्य प्रारम्भ कर दिया. पर 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात उनकी आगे की शिक्षा आर्थिक अभाव के कारण पूरी नहीं हो सकी. परिवार के भरण-पोषण के लिए वह मजदूरी करने लगे, पर इस दौरान भी चित्रकला से उनका लगाव छूटा नहीं. जब भी उन्हें समय मिलता, वह अपने समुदाय के सक्रिय चित्रकारों के सान्निध्य में चित्रकर्म देखते और सीखते. मरावी की प्रथम गुरु उनकी बहन बुधवरिया हैं, जिनके सान्निध्य में उन्होंने चित्रकला सीखी. अपने चित्रों में अधिक पैनापन और विविधता न होने एवं ज्यादा सुअवसर न मिल पाने से मरावी चित्रकर्म में एकाग्र नहीं हो पाये. इस बीच मंती बाई से उनका विवाह हुआ. पत्नी के निरंतर सहयोग से उन्होने अपनी चित्रकर्म की यात्रा एक बार फिर नयी उर्जा से शुरू की और चित्रों को गढ़ना प्रारंभ किया एवं नये विषयों पर चित्र बनाने लगे.वर्तमान में सुखीराम मरावी अपनी स्मृति कथाओं को नए रूप में संयोजित कर सतत् चित्रकर्म में संलग्न हैं. उनके चित्र देश-विदेश के अनेक निजी संग्रहों और शासकीय संस्थाओं में देखे जा सकते हैं.