पटनाइप्टा प्लैटिनम जुबली समारोह के चौथे दिन जन-सांस्कृतिक आन्दोलन और महिलाएँविषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी में सामाजिक कार्यकर्ता और जन-गायिका शीतल साठे ने कहा  "  महात्मा ज्योतिबा फुले ने बरसों पहले यह बात कह दी थी कि स्त्री मुक्ति से ही मानव मुक्ति का द्वार खुलेगा।"  अपनी माँ और लेखिका रज़िया सज्जाद ज़हीर के संघर्षों को याद करते हुए रंगकर्मी नादिरा ज़हीर बब्बर ने बतायाउनके परिवार की जड़ों में सियासत है और जब उनके पिता सज्जाद ज़हीर स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जेल जाया करते थे और परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी तो उनकी माँ रज़िया सज्जाद ज़हीर ट्यूशन पढ़ा कर घर चलाती थीं। उनके घर में लड़के लड़कियों के बीच कोई भेद नहीं था। आज उन्होंने कई नाटक ऐसे लिखे हैं जो महिला विषयों पर केन्द्रित हैं।

जनजागरण शक्ति संगठन की सामाजिक कार्यकर्ता कामायनी ने इस विषय पर  कहा  " हम औरतों ने अपनी गृहस्थी में क्या क्या नहीं खो दिया है। अपनी पढ़ाई लिखाई सब कुछ। अपने काम के दौरान के अपने अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि हालात बदल रहे हैं और हम औरतें बदलेंगी ज़रूर लेकिन इसमें पुरुषों को भी साथ देना होगा अगर वे ईमानदारी से चाहते हैं कि हालात बदलें।' 

इस बात को आगे बढ़ाते हुए रज़िया सज्जाद ज़हीर की छोटी बेटी और रंगकर्मी नूर ज़हीर ने कहाहमें सोचना होगा कि महिलाएँ कैसे माईक पर बोलें। इसके लिए ज़रूरी है कि हम सोचें कि कैसे हर क्षेत्र में महिलाएँ भागीदारी निभाएँ। जिस तरह आज महिलाओं का मी-टूआन्दोलन चल रहा है, ज़रूरत है कि दलित और आदिवासी महिलाएँ भी मी-टूआन्दोलन करें।एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहामहिलाएँ हमेशा से पुरुषों से ज़्यादा काम करती रही हैं। ख़ास कर महिला मजदूर। वे सुबह उठ कर घर का सारा काम करके मज़दूरी करने जाती हैं और वापस लौट कर भी फिर से घर का काम करती हैं। असल में हमें धर्म और संस्कृति को चुनौती देना होगा अगर हम चाहते हैं कि महिलाएँ मैदान में उतरें।

संगोष्ठी के अंत में राष्ट्रीय इप्टा के महासचिव राकेश ने कहा कि इप्टा का अगला आयोजन महिला महोत्सव होगा।