जागरण संवाददाता, नई दिल्ली: निजता, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता ये स्त्रियों का आधारभूत हक है। स्त्रियों के इन्हीं आधारभूत अधिकारों पर उन्होंने अपना उपन्यास लिखा है। इन अधिकारों के नहीं मिल पाने की पीड़ा स्त्रियां लंबे समय से झेलती रही हैं। अब स्थितियां बदल रही हैं। हमसे पहले की पीढ़ी की स्त्रियां इन अधिकारों के नहीं मिल पाने की पीड़ा को चुपचाप सहन कर लेती थीं। हमारी पीढ़ी की स्त्रियों ने अधिकारों के लिए बोलना शुरु कर दिया था और आज की युवा स्त्री अपने अधिकारों के लिए संघर्ष ही नहीं करती उसको बहुत हद तक हासिल भी कर लेती हैं। ये कहना है उपन्यासकार रजनी गुप्त का जो दैनिक जागरण हिंदी हैं हम के मंच पर राजपाल एंड संस से प्रकाशित अपने नए उपन्यास तिराहे पर तीन पर संवाद कर रही थीं। रजनी गुप्त ने अपने इस उपन्यास में तीन अलग अलग पीढ़ी की स्त्रियों के माध्यम से भारतीय समाज में उसकी बदलती हुई स्थितियों को दिखाने का प्रयास किया है। लेखिका के मुताबिक उनकी इस पुस्तक में आत्मस्वीकृतियां नाम से जो अध्याय है उसमें उन्होंने स्त्री जीवन के उस आवरण को हटाने की चेष्टा की है जिनको वो पारिवारिक और सामाजिक संरचना में बेहद जतन के साथ ढके रहती हैं।
रजनी गुप्त का कहना है कि जब भी कोई यथार्थ भयावह रूप से उनके सामने उपस्थित होता है या जब यथार्थ की भयावहता उनकी चेतना को प्रभावित करने लगती है तो वो अपनी कृतियों में कल्पना के रंगमहल नहीं बना पाती हैं। उनके अंदर का जो आक्रोश होता है उसको वो अपने लेखन के माध्यम से समाज के सामने रख देती हैं। उनके मुताबिक जब स्त्रियों के अंदर कुछ टूटता है तो उसकी संवेदना एक अलग ही स्तर पर जाती है। उस संवेदना को भी रजनी गुप्त अपने आक्रोश के साथ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती हैं। कई बार अपनी मर्जी की जिंदगी जीने की जिद में स्त्रियां जब प्रेम करती हैं तो छली भी जाती हैं। धोखा खाने के बाद अंदर से टूटती भी हैं। रजनी गुप्त ने बताया कि उनके इस उपन्यास में इस बात को भी पाठकों के सामने रखा गया है कि घर के लिए परिवार के लिए और समाज के लिए सबकुछ करने के बाद भी स्त्री का अपना जीवन कहां होता है। जब स्त्रियां अपने कार्यालय आती हैं तो उसके अवचेतन में उसका पूरा घर भी साथ आता है। वो ये प्रश्न भी उठाती हैं कि एक स्त्री का संघर्ष क्या है, उसके स्वप्न क्या है और उसका गंतव्य क्या है। उन्होंने बताया कि अपने इस उपन्यास में तीन स्त्रियो के माध्यम से उन्होंने स्त्रियों के सपनों और पीड़ा को रेखांकित किया है। तीन नायिकाओं की जिंदगी बहुत ही टूटे फूटे रूप में इस उपन्यास में है। स्त्री को अपने स्वप्न को पूरे करने के लिए समाज के बने बनाए मानकों को तोड़ना होगा, तोड़ने के बाद अपने दम पर अपनी यात्रा का जोखिम उठाती स्त्रियों का चित्र इस उपन्यास में है। एक स्त्री के सामने यातना से बाहर निकलने का रास्ता क्या है। उस रास्ता के तो स्त्री को खुद ही खोजना होगा।
रजनी गुप्त कहती हैं कि कई बार किरदारों को रचते हुए उनके चरित्र के विरोधाभास को भी दिखाना पड़ता है। वो कहती हैं कि नई पीढ़ी की स्त्रियों का जीवन अपने पूर्ववर्ती पीढ़ी की स्त्रियों की तुलना में बहुत अधिक जटिल है। उनके रिश्ते जितनी आसानी से या जितनी जल्दी बन जाते हैं उतनी ही आसानी से या उतनी ही जल्दी टूट भी जाते हैं। वो प्रेम को पकड़कर नहीं बैठती हैं। प्रेम होता है तो कर लेती हैं और जब वो टूटने लगता है तो टूटने भी देती हैं । इनको लेकर किसी तरह के अपराध बोध से ग्रसित नहीं होती हैं। नौकरी मिलती भी है, छूटती भी हैं और फिर नई मिल भी जाती है। नई पीढ़ी के अंदर एक अच्छी बात ये है कि वो स्थितियों को उसी तरह से लेती है जैसे वो उनके जीवन में आती जाती हैं।
दैनिक जागरण की अपनी भाषा हिंदी को समृद्ध करने का उपक्रम है ‘हिंदी हैं हम’। इसके अंतर्गत जागरण वार्तालाप का आयोजन किया जाता है जिसमें हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के लेखकों की नई कृतियों पर उनसे संवाद होता है।