पटना: पटना साहित्य महोत्सव में समानांतर सत्र के दूसरे सेशन का विषय था " लोकतांत्रिक साहित्य बनाम साहित्यिक लोकतंत्र '   प्रतिभागी थे अनिल धारकर और पवन वर्मा और उनसे बात की एमी फर्नांडिस ने। 

पवन वर्मा  ने अपने आरंभिक वक्तव्य में कहा  कि " साहित्य को लोकतांत्रिक नहीं बनाया जा सकता । जनता दूसरे  ढंग का साहित्य पढ़ती  है जबकि एलीट दूसरे तरीके  का जिसे हम क्लास और मास साहित्य कहते हैं।  क्लासकिल और पॉपुलर का विभाजन मुझे ठीक नहीं जंचता। भारत में अंग्रेज़ी एक बड़ी बाधा है। अंग्रेज़ी का मीडियाकर लेखक को अखिल भारतीय बाजार मिल जाता है जबकि भारतीय भाषाओं में बहुत बढ़िया साहित्य  भी उस भाषाई क्षेत्र में सिमट जाता है। इसके साथ अनुवाद का काम भी ठीक से नहीं होता है।  जैसे चेतन भगत की किताबें बड़ी संख्या में बिकती है। वैसे उसकी किताबें सस्ती  भी होती हैं। काफी युवा चेतन भगत को पढ़ रहे हैं भले उसमे उनमें साहित्यिक आस्वाद न मिलता हो।

 अनिल धारकर के अनुसारसाहित्य को जनतांत्रिक बनाने का रास्ता सोशल मीडिया है। कोई भी ब्लाग पर लिख सकता है। अब ये अलग सवाल है कि उसकी गुणवत्ता क्या है? चेतन भगत  के बारे में कई लोगों का ख्याल है कि वो अच्छी अंग्रेज़ी नहीं लिखता।  हमें हिंदी के लेखकों व उद्यमी से ये सवाल  पूछना चाहते हैं कि वो क्यों नहीं अपनी भाषा में साहित्य महोत्सव करते ?"