गाजियाबाद: इंदिरापुरम स्थित गौड़ बिज पार्क में पिछले दिनों सृजन संवाद के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के साहित्यकारों का जमावड़ा हुआ. इस मौके पर अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि दिविक रमेश ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण तो है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि यह दिखाता क्या है और आप देखते क्या हैं? उन्होंने कहा कि दर्पण में स्वयं को निहार कर आप आत्ममुग्ध भी हो सकते हैं और आत्मावलोकन भी कर सकते हैं. अब समय आ गया है कि हम अपनी खींची लक्ष्मण रेखा से बाहर निकल कर साहित्यिक छुआछूत को खत्म करें. मुख्य अतिथि विज्ञान व्रत ने कहा कि एनसीआर साहित्य की भी राजधानी है लेकिन यहां रचनाकार खेमों में बंटे हैं. साहित्य के क्षेत्र में लंबे समय से व्याप्त संवादहीनता को तोड़ने का समय आ गया है. उन्होंने एक ऐसा मंच स्थापित करने पर बल दिया जहां लोगों को खुले तौर पर अपनी बात कहने और गुनने का अवसर मिल सके. कार्यक्रम के संयोजक कमलेश भट्ट कमल ने कहा कि साहित्यिक विमर्श के लिए एक मंच ऐसा होना चाहिए जहां तमाम वाद से मुक्त सिर्फ संवाद हो. शायर सुरेंद्र सिंघल ने कहा कि एक ऐसा साझा मंच आवश्यक है जहां लोग अपने खोल से निकल कर आ सकें. उन्होंने कहा कि साहित्य के पोषण के लिए संवाद का धरातल जरूरी है.

 

वी.के. शेखर ने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं है, साहित्य समाज का दीपक है, इसके संवर्धन के लिए एक ऐसा दीपक जलाना अति आवश्यक है जो रचनाकारों को एक राह पर ले आए. प्रो.चंद्रदेव सिंह ने कहा कि जन से जुड़ने की जगह यश लोगों का प्रयोजन हो गया है, जिसके चलते रचनाकार एकाकी हो गए हैं. आलोक यात्री ने कहा कि सृजन संवाद सार्थक तभी होगा जब हम अपनी हदबंदी और घेराबंदी तोड़ कर दायरे को व्यापक करेंगे. संवाद का  दूसरा सत्र रचना पाठ का था. जिसमें अंजू जैन ने सरस्वती वंदना के बाद नमक जैसी जरूरी और कभी गुड़ की डली है मां गीत पर जमकर वाहवाही बटोरी. डॉ. वीना मित्तल के हाइकु 'भूख है बड़ी, सुबह को मिटाओ, शाम को खड़ी', 'मुट्ठी में राख, जिंदगी तेरी, बस यही औकात' भी खासे सराहे गए. प्रो. चंद्रदेव सिंह ने अपने दोहों के माध्यम से मौजूदा दौर की तल्ख सच्चाई बयान करते हुए कहा कि 'हल खूंटी पर टंगा बैल बिके बेदाम, गांव निठल्ला हो गया बैठा है बेकाम'.शायर सुरेंद्र सिंघल ने सुनाया, 'सवाल यह तो नहीं है कि उसने देखा क्या, सवाल यह है कि गवाही में वह कहेगा क्या?' ओमप्रकाश यती, सुरेश कांत, वी.के. शेखर, आलोक यात्री और प्रवीण कुमार की रचनाएं भी खूब सराही गईं. इस अवसर पर शबीह हैदर, डॉ. अतुल जैन सहित बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी मौजूद थे.