जयपुर: समानांतर साहित्य महोत्सव के नागार्जुन मंच पर 'सूफियों का प्रेम दर्शन ' विषय पर आयोजत बातचीत में शामिल थे सुखदेव सिंह सिरसा, सुरजीत जज और शकील सिद्धिकी । बातचीत की शुरुआत करते हुए शकील सिद्दीकी ने कहा " मध्ययुग में इस्लाम की सत्ता थी सूफियों ने उनके द्वारा अभिव्यक्ति के निर्धारित दायरों को तोड़ा। तब सूफी होना ही विद्रोही था। तब सूफियों के मज़ारों पर जाना ही सत्ता व धर्म के खिलाफ माना जाता था।। आज भी कट्टर इस्लाम को माननेवाले मज़ारों पर जाने को अच्छी निगाह से नही माना जाता। सूफियों के मज़ारों में आग लगा दी जाती थी। आज बड़े धन्नासेठों के समर्थन से नफरत का माहौल फैलाया जा रहा है। ऐसे समय मे सूफी परम्परा बेहद महत्वपूर्ण है।"
सूफी धारा पर शोध करने वाले डॉ सुखदेव सिंह सिरसा ने अपने संबोधन में कहा " मध्य काल के सामन्ती जमात जो हिंसा की भाषा मे बात करती है उसके बदले सूफियों ने प्रेम की भाषा मे जवाब दिया। सूफियों ने कहा प्रेम विद्रोह की मांग करता है। इश्क मन की सफाई की बात करता है । बुल्लेशाह का पहला विरोध अपने घर से शुरू होता है। सैय्यद होते हुए भी एक नीची जाति को गुरु बनाया, वेश्या से संगीत सीखा। बादशाह की सत्ता को धर्मग्रंथ वैधता प्रदान करते हैं। इसलिए सूफी लोग इन दोनों का विरोध करते है। सूफी इस्लाम के नहीं बल्कि उसकी गलत व्याख्या , उसके नाम और लूटने वाले के खिलाफ हैं।"
निज़ामुद्दीन औलिया को उद्धृत करते हुए सुखदेव सिंह सिरसा ने आगे कहा " उनसे पूछा गया अल्लाह किस भाषा मे बात करता है ? अल्लाह हिंदवी में बोलता है। ये अपने आप मे बहुत बड़ी बात है थी। आज भोगवाद के दौर में संयम व सादगी की बात करते हैं सूफी लोग। बाजारवाद के दौर में संयम का फलसफा एक मानीखेज फलसफा है। "