हिंदी साहित्य लगातार अपने समर्पित सेवकों को खो रहा है. अभी प्रेम भारद्वाज को गए बहुत समय नहीं बीता कि अब सुषम बेदी के जाने की खबर आ गई. हिंदी के समकालीन कथा और उपन्यास साहित्य में सुषम बेदी एक जाना-माना नाम हैं. 1 जुलाई, 1945 को पंजाब के फिरोजपुर में वह पैदा हुईं. दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमफिल और पंजाब यूनिवर्सिटी से पीएचडी की उपाधि हासिल की. रेडियो से वह बचपन से ही जुड़ी रहीं. दिल्ली दूरदर्शन औऱ रेडियो पर नाटकों तथा दूसरे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जम कर काम किया और अध्यापन से भी जुड़ी रहीं. पहले पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ाया और फिर संयुक्त राज्य अमेरिका चली गईं. वहां न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा और साहित्य की प्रोफेसर रहीं. जीवन की इस यात्रा में निरंतर लिखना – पढ़ना जारी रहा. उनकी पहली कहानी 1978 में छपी. वह प्रवासी हिंदी साहित्य के सर्वाधिक प्रतिष्ठित नामों में एक थीं.
सुषम बेदी की रचनाओं में भारतीय और पश्चिमी संस्कृति के बीच झूलते प्रवासी भारतीयों के मानसिक द्वंद्व का बखूबी उल्लेख हुआ है. उनके निधन की सूचना से हिंदी साहित्य जगत मर्माहत है. शोक संवेदना प्रकट करने वालों में साधना अग्रवाल, प्रेम जनमेजय, उषा किरण खान, रूपा सिंह, राहुल देव, लालित्य ललित, दिविक रमेश, धीरेंद्र अस्थाना, चित्रा देसाई, रजनी गुप्ता, विभा रानी व ओम प्रकाश तिवारी जैसे साहित्यकार, पत्रकार शामिल हैं. विश्व हिंदी साहित्य परिषद और आधुनिक साहित्य की तरफ से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आशीष कंधवे ने लिखा कि हिंदी साहित्य की वैश्विक कहानीकार सुषम बेदी अब हमारे बीच नहीं है. वह जितनी बड़ी कहानीकार थी, उतना ही बड़ा मानव हृदय भी उनके भीतर था. पिछले वर्ष अमेरिका यात्रा के द्वारा दौरान अनूप भार्गव के घर आयोजित गोष्ठी में उनसे जमके मिलना हुआ और हमने खूब बातें की.उनका निश्चल, पवित्र और निर्मल व्यवहार हमेशा याद आता रहेगा. उनकी मधुर आवाज की स्मृतियां कानों में गुंजित होती रहेंगी. अपनी कहानियों के माध्यम से उन्होंने वैश्विक स्तर पर हिंदी साहित्य को समिधा के रूप में अपना जो योगदान दिया है उस 'हवन' की खुशबू अनेक दशकों तक हिंदी साहित्य समाज को सुगंधित करती रहेगी.