ओस्लोः भारत नॉर्वेजियन सूचना सांस्कृतिक फोरम द्वारा सुरेशचन्द्र शुक्ल की 'विसर्जन के पहले' पर परिचर्चा और अंतर्राष्ट्रीय काव्य गोष्ठी का डिजीटल आयोजन हुआ. मुख्य अतिथि लेखक और समालोचक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा थे. उन्होंने कहा कि वरिष्ठ साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल की कहानी 'विसर्जन के पहले' दो संस्कृतियों के बीच संवाद बनाती है. इसके साथ ही यह दो सभ्यताओं के बीच सेतु और अंतराल दोनों को बताती है. मनुष्य जीवन भी सृजन से विसर्जन तक और विसर्जन से पुनर्सृजन तक निरंतर चलता रहता है. शुक्ल ने स्कैंडिनेवियाई देशों नार्वे, स्वीडेन, डेनमार्क, फिनलैंड में जो देखा और अनुभव किया, वह उनकी कहानियों में प्रकट होता है. अध्यक्षता कर रहे डॉ गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर' ने कहा कि 'विसर्जन के पहले' कहानी एक विदेशी महिला के भारतीय संस्कृति में समावेशित करने वाली उत्कृष्ट कहानी है, जो कथा साहित्य में अपना अप्रतिम स्थान बनाएगी. यह कहानी उषा प्रियंवदा की कहानी 'वापसी' की तरह हमेशा याद की जाएगी. प्रमिला कौशिक ने इसे मानवीय संवेदनाओं की कहानी कहा. संचालक सुवर्णा जाधव ने कहा कि यह कहानी स्वीडन और भारतीय परम्पराओं, प्रकृति का सामाजिक दर्शन प्रस्तुत करती है.
रायपुर से डॉ आकांक्षा मिश्रा ने कहा अभी कुछ समय पहले मैं विसर्जन और अस्थि कलश से गुजर चुकी हूं. यह कहानी मानवीय सरोकारों से परिपूर्ण है और यथार्थ के धरातल पर खरी उतरती है. ओम सपरा ने कहा कि भाषा, शिल्प और कथानक के हिसाब से कहानी विसर्जन के पहले बहुत अच्छी सधी हुई कहानी है. नागरी लिपि परिषद के मंत्री एवं नागरी संगम और सौरभ पत्रिका के सम्पादक डॉ हरिसिंह पाल ने कहानी को रोचक बताते हुए सुरेशचन्द्र शुक्ल को प्रवासी लेखकों में महत्वपूर्ण बताया. अर्जुन पांडेय के अनुसार इसमें दो संस्कृतियों के समर्पण भाव को जोड़ने का जो कार्य किया है वह सराहनीय है. आथर्स गिल्ड आफ इंडिया के महासचिव डॉ शिवशंकर अवस्थी ने कहानी को भारतीय और पश्चिमी संस्कृति का संगम बताया. कार्यक्रम में अमेरिका से डॉ राम बाबू गौतम, ब्रिटेन से डॉ क्रांति कुमार, स्वीडेन से यशपाल, भारत से प्रो हरनेक सिंह गिल, डॉ दीपक पांडेय, प्रोफ़ेसर लहरी राम मीणा, देवेंद्र कश्यप 'निडर', डॉ दिग्विजय शर्मा, कैलाश देवी सिंह, डॉ रश्मि चौबे, डॉ अर्जुन पांडेय, डॉ श्वेता पंड्या आदि ने शिरकत की.
( ओस्लो से माया भारती की रिपोर्ट)