कोलकाताः विचार मंच की ओर से पश्चिम बंगाल की सुपरिचित प्राध्यापक-रचनाकार स्वर्गीय सुकीर्ति गुप्ता की आत्मकथा 'कोलाज: जीवन के कुछ अनछुए प्रसंग' का लोकार्पण कलकत्ता विश्वविद्यालय में संपन्न हुआ. इस लोकार्पण कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर तथा राज्यसभा के पूर्व सदस्य डॉ चंद्रा पाण्डेय थे. विशिष्ट अतिथि के रूप में संस्कृतिकर्मी, आलोचक, कवि प्रियंकर पालीवाल व पत्रकार शैलेंद्र उपस्थित थे. इस अवसर पर वक्ताओं से सवाल पूछा गया कि स्त्रियां आत्मकथा लिखने की बजाय कथा-कहानी में आत्मकथात्मक अंश विन्यस्त क्यों करती हैं ? का जवाब देते हुए प्रियंकर पालीवाल ने सुकीर्ति गुप्ता की आत्मकथा को ही उद्धरण के तौर पर प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा कि स्त्रियां आत्मकथा नहीं लिखती हैं तो इसका कारण यह नहीं है कि उनके पास अनुभवों की कमी है या उनके पास कुछ कहने को नहीं है. बल्कि स्त्रियां आत्मकथा इसलिये नहीं लिखती हैं कि वे अर्धसत्य कहना नहीं चाहतीं और पूरा सच कह देंगीं तो भूचाल आ जाएगा.
पालीवाल ने चेतावनी के अंदाज में कहा कि स्त्री लेखिकाएं अगर आत्मकथा लिखने लगें, तो समाज की कई नामवर और नामावर हस्तियां, जो जब-तब यहां-वहां, सभा-सोसाइटी और मंच पर अपना उज्ज्वल मुख चमकाती दिख जाती हैं, वे अपना मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगीं. पर अच्छी बात यह है कि अब स्त्रियां भी साहस के साथ आत्मकथा लिख रही हैं. प्रभा खेतान की 'अन्या से अनन्या' के बाद कोलकाता के हिन्दी साहित्य-समाज से किसी स्त्री द्वारा लिखी यह दूसरी आत्मकथा है, जो प्रकाश में आई है. उन्होंने कहा कि संयोग से दोनों ही वरिष्ठ लेखिकाओं से उनके जीवन की सांझ वेला में मेरा थोड़ा-बहुत परिचय और बातचीत रही है. हालांकि इस आत्मकथा में सुकीर्ति गुप्ता ने पात्रों के नामों में ध्वनि-साम्य रखते हुए अथवा संकेत-सूत्र छोड़ते हुए थोड़ा-बहुत हेरफेर किया है, पर इस परिवर्तन के बावजूद उन चरित्रों को पहचानना बहुत मुश्किल नहीं है. उन्होंने डॉ किरण सिपानी का आभार व्यक्त किया कि उनके उद्यम से लेखिका की मृत्यु के छह साल बाद सही, यह आत्मकथा पाठकों तक पहुंच सकी. इस आयोजन की सूत्रधार डॉ गीता दुबे रहीं.