नई दिल्लीः समूचा साहित्य जगत ही नहीं बल्कि सियासत व आमजन ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर उन्हें याद किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का तो दिनकर से लगाव जगजाहिर है. चाहे संसद हो या सरहद वह दिनकर की लिखी पंक्तियों से उन्हें याद करते रहते हैं. रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट किया, “राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जी को उनकी जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि. उनकी कालजयी कविताएं साहित्यप्रेमियों को ही नहीं, बल्कि समस्त देशवासियों को निरंतर प्रेरित करती रहेंगी.” गृह मंत्री अमित शाह ने लिखा, “राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' जी अपनी उपाधि के अनुरूप साहित्य जगत में अपने लेखन के माध्यम से एक सूरज की भाँति चमके. उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अपनी कलम की शक्ति से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और आजादी के बाद अपने विचारों से समाज की सेवा की.” ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिनकर की पंक्ति से ही उन्हें याद किया. उनका ट्वीट था, “समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध. जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध. अपनी ओजस्वी रचनाओं से राष्ट्रीय चेतना का नवसंचार करने वाले, हिन्दी के महान रचनाकार 'राष्ट्रकवि' श्री रामधारी सिंह “दिनकर” जी की जयंती पर उन्हें मेरा कोटि कोटि नमन.“
प्रख्यात गीतकार व कवि प्रसून जोशी ने अपना श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए लिखा, “दिनकर जी की कविताओं में जीवन संदेश था जो सदा हमारा मार्ग प्रशस्त करता रहेगा; वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो चट्टानों की छाती से दूध निकालो है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो -रामधारी सिंह “दिनकर“. बिहार से जुड़े लेखक, कूटनीतिज्ञ अभय के. ने दिनकर की इन पंक्तियों से उन्हें याद किया, “सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं.—रामधारी सिंह दिनकर.” याद रहे कि राष्ट्रकवि के रूप में समादृत रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर, 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. देशभक्ति से ओत-प्रोत उनकी कविताओं ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लोगों को प्रेरणा दी थी. राज्य सभा के तीन बार सदस्य रहे रामधारी सिंह 'दिनकर' का 24 अप्रैल 1974 को निधन हुआ. पर इससे पहले वह राष्ट्रवादी, प्रगतिवादी और मानववादी कवि के रूप में उन्होंने ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं को ओजस्वी और प्रखर शब्दों का तानाबाना दे चुके थे. उनकी महान रचनाओं में रश्मिरथी और परशुराम की प्रतीक्षा शामिल है. उर्वशी को छोड़कर दिनकर की अधिकतर रचनाएं वीर रस से ओतप्रोत हैं. ज्ञानपीठ से सम्मानित उनकी रचना उर्वशी की कहानी मानवीय प्रेम, वासना और सम्बन्धों के इर्द-गिर्द घूमती है. इसी तरह 'संस्कृति के चार अध्याय' से उनकी विशद सोच का पता चलता है, जिस में दिनकर ने कहा है कि सांस्कृतिक, भाषाई और क्षेत्रीय विविधताओं के बावजूद भारत एक देश है. क्योंकि सारी विविधताओं के बाद भी, हमारी सोच एक जैसी है.