जमशेदपुरः कोल्हान विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में 'सदी का संकट और हिंदी' विषयक एक राष्ट्रीय वेबिनार हुआ. गूगल मीट एप्लीकेशन के माध्यम से इस वेबिनार में देशभर के करीब 545 प्रतिभागी शामिल हुए. केयू की कुलपति डॉ शुक्ला मोहांति ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कहा कि कोरोना विषाणु एक बड़ा संकट है लेकिन हर संकट कुछ नया सिखा जाता है. हमारी कोशिश है कि हमारे विद्यार्थियों और शिक्षकों को अपने ज्ञान, शिक्षण के तरीके और सीखने की प्रक्रिया को लगातार तराशने का मौका मिले. इसलिए इस तरह के वेबिनार महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं. सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब अनसोशल होना नहीं है. कई बार हम समाज के बीच रहकर भी अकेले होते हैं और कभी अकेले रहते हुए भी समाज के साथ खड़े होते हैं. हमें धैर्य रखने की जरूरत है. क्षण भर का संकट समय-समाज की स्थायी संवेदनाओं को नहीं मिटा सकता. हम दूर रहकर भी अधिक करीब हो रहे हैं. सड़कों पर विनाश के साथ ही सृजन और निर्माण भी दिख रहा है. यही जीवन है और साहित्य हमेशा जीवन को बड़ा मानता और बनाता आया है. इसलिए इस वेबिनार में होने वाले विमर्श हमें और मजबूत व्यक्ति बनाने में मानसिक संबल देंगे.
इस वेबिनार में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के आचार्य डॉ राजकुमार ने संकट की इस सदी में विचारधारा और आलोचना के स्वरूप और चरित्र पर बात की. उन्होंने कहा कि दूसरे ज्ञानानुशासनों के बनिस्पत साहित्य इन अर्थों में अलग है कि वह किसी भी संकट को भोथरे और तात्कालिक संदर्भों में ही नहीं देखता. वह भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं है बल्कि जटिल संवेदन प्रक्रिया है. वह राजनीति, अर्थशास्त्र जैसे अनुशासनों का न तो पिछलग्गू है न ही आत्ममुग्ध नेता. बल्कि वह इन सबसे संबद्ध होते हुए एक स्वायत्त संरचना है. ज्ञान के क्षेत्र में कोई प्रोटोकॉल नहीं चलता. जब भी मनुष्यता खतरे में पड़ी है, साहित्य ने उसके लिए महान मानवीय सृजन किये हैं. इसलिए सदी के इस संकट के भीतरी स्तरों की पहचान साहित्य भविष्य में जरूर करेगा. वेबिनार में स्वागत भाषण संयोजक डॉ श्रीनिवास कुमार, सत्रों का संयोजन व संचालन आयोजन सचिव डॉ अविनाश कुमार सिंह व तकनीकी सहयोग कन्हैया सिंह ने किया. प्रतिभागी शिक्षक, शोधार्थी और स्नाकोत्तर के विद्यार्थियों ने वक्ताओं से सक्रिय संवाद किया.