पटनाः अंगक्षेत्र के रसज्ञ विद्वान एवं साहित्य में शोध पत्रकारिता के राष्ट्रीय संपादक आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव नहीं रहे. वह लंबे समय से बीमार चल रहे थे. साहित्यिक पत्रकारिता में वे शिवचंद्र शर्मा, नलिनविलोचन शर्मा, लक्ष्मीनारायण सुधांशु, रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय, आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री, महापण्डित राहुल सांकृत्यायन आदि की समृद्ध परम्परा में अंतिम कड़ी थे. 'परिषद् शोध पत्रिका' के 26 वर्षों के संपादन काल में उन्होंने 1200 शोध संलेखों का संपादन कर जो कीर्तिमान स्थापित किया, जिसे अबतक खंडित नहीं किया जा सका है. सोशल मीडिया पर इस सूचना के शेयर होते ही उन्हें श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लग गया. वजह यह भी थी कि आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव के द्वार से कभी कोई नवोदित लेखक या साहित्यकार निराश होकर नहीं गया. नये लेखकों को प्रोत्साहन देना, उनकी कृतियों का संपादन करना और भूमिका भी लिख देना आचार्यजी की विशेषता रही. असंख्य लेखकों ने अपनी कृतियों की भूमिका आचार्य जी से लिखवाई और असंख्य ने अपनी पुस्तकों की समीक्षा करवाई. वह देश की अनगिन पत्र-पत्रिकाओं और संस्थाओं के परामर्शदाता या मार्गदर्शक थे और किसी खेमे से नहीं जुड़े थे. विद्वत्समाज का सभी वर्ग उनको अपना समझता था.

 
आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव का मूल नाम राजकुमार पाठक था.उनका जन्म 28 अक्तूबर,1926 को संथाल परगना के देवघर स्थित शुभेश्वरनाथ धौनी नामक गांव में हुआ था. वह संस्कृत, प्राकृत, पाली, हिंदी, अपभ्रंश, अंगिका, मैथिली, मागधी, आदि अनेक भाषाओं के विश्वविश्रुत विद्वान् थे. उनको 'प्राकृत-साहित्य का आधुनिक हेमचन्द्राचार्य' तथा 'पाली-साहित्य का आधुनिक बुद्धघोष' कहा जाए तो अत्युक्ति न होगी. प्राकृत-साहित्य में उनकी दक्षता का आलम यह था कि देश के अधिकांश विद्वान उन्हें जैन-मतावलम्बी और प्राकृत-साहित्य का ही विद्वान मानते थे. आचार्य सूरिदेव प्राकृत शोध संस्थानवैशाली में व्याख्याता भी थे और 'साहित्यवाचस्पति', 'विद्यावाचस्पति', 'साहित्यरत्न', 'साहित्यालंकार', 'साहित्यमार्तण्ड', 'जैनदर्शनाचार्य', 'व्याकरणतीर्थ', 'भारतभाषाभूषण', 'आयुर्वेदरत्न' आदि अनेक साहित्योपाधियों से समलंकृत थे. उन्होंने गीतों से अपना लेखनारंभ किया था. गीतों के उनके दो संग्रह 'गीत संगम' तथा 'बहुत है' प्रकाशित हैं. फिर वे शोध और साहित्यिक पत्रकारिता की ओर जो उन्मुख हुए, तो कभी सर्जनात्मक लेखन की ओर चाहकर भी लौट नहीं पाए. जागरण हिंदी की ओर से साहित्य मर्मज्ञ आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव को नमन!