नई दिल्ली: साहित्य अकादमी द्वारा अकादमी सभाकक्ष में 'साहित्य मंच' कार्यक्रम शृंखला के अंतर्गत बहुभाषी कहानी पाठ का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में मैथिली, उर्दू और हिंदी के तीन चर्चित कथाकारों ने अपनी कहानियों का पाठ किया. मैथिली कथाकार गिरिजानंद झा 'अर्धनारीश्वर' की कहानी 'शोणितक नोर' (खून के अश्क) सांप्रदायिक सौहार्द वाली दुनिया की कामना वाली एक बेहतरीन कहानी थी, जिसका कैनवस भारत की आजादी के पूर्व से लेकर वर्तमान काल तक विस्तृत था और भारत की मिथिला के एक गांव 'पंडितपुर' से लेकर पाकिस्तान के करांची शहर तक को अपने में समेटे हुए था.
उर्दू कथा लेखिका डॉ. रेनू बहल की कहानी 'इब्ने मरियम हुआ करे कोई' का ताना-बाना बहुत ही दिलचस्प था, जिसमें खुदकुशी करके मरी हुई एक बच्ची द्वारा दुबारा जन्म लेने के लिए किसी कोख की तलाश के बहाने उसकी और संभावित कोख वाली स्त्री के संवाद के माध्यम से वर्तमान समाज में स्त्रियों की स्थिति का मार्मिक चित्रण किया गया था.
प्रख्यात हिंदी कथाकार भगवानदास मोरवाल ने अपनी 'बियावान' शीर्षक कहानी का पाठ किया. इस कहानी का कलेवर भी भारत की आजादी के समय से लेकर वर्तमान दौर तक विस्तृत था. लेखक ने मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं के बिलकुल बदल जाने तथा गांवों के बियावान होने जाने की त्रासदी का चित्रण करते हुए हमारी चेतना को प्रश्नांकित किया. श्रोताओं ने यह महसूस किया कि सौहार्द और भाईचारा की संवेदनाओं के दरकते जाने के इतिहास को समेटने वाली यह कहानी औपन्यासिक फलक रखती है.
इस अवसर पर सुधी श्रोताओं ने कहानियों पर अपने विचार भी रखे तथा कथाकारों से कुछ सवाल भी किए. हिंदी-उर्दू के प्रख्यात कथाकार मुशर्रफ आलम जौकी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पठित कहानियों में इनके लेखकों ने आजादी के बाद के हिंदुस्तान को देखने का साहस किया है. कार्यक्रम का संचालन करते हुए अकादमी के विशेष कार्याधिकारी डा. देवेंद्र कुमार देवेश ने अंत में औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया.
उर्दू कथा लेखिका डॉ. रेनू बहल की कहानी 'इब्ने मरियम हुआ करे कोई' का ताना-बाना बहुत ही दिलचस्प था, जिसमें खुदकुशी करके मरी हुई एक बच्ची द्वारा दुबारा जन्म लेने के लिए किसी कोख की तलाश के बहाने उसकी और संभावित कोख वाली स्त्री के संवाद के माध्यम से वर्तमान समाज में स्त्रियों की स्थिति का मार्मिक चित्रण किया गया था.
प्रख्यात हिंदी कथाकार भगवानदास मोरवाल ने अपनी 'बियावान' शीर्षक कहानी का पाठ किया. इस कहानी का कलेवर भी भारत की आजादी के समय से लेकर वर्तमान दौर तक विस्तृत था. लेखक ने मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं के बिलकुल बदल जाने तथा गांवों के बियावान होने जाने की त्रासदी का चित्रण करते हुए हमारी चेतना को प्रश्नांकित किया. श्रोताओं ने यह महसूस किया कि सौहार्द और भाईचारा की संवेदनाओं के दरकते जाने के इतिहास को समेटने वाली यह कहानी औपन्यासिक फलक रखती है.
इस अवसर पर सुधी श्रोताओं ने कहानियों पर अपने विचार भी रखे तथा कथाकारों से कुछ सवाल भी किए. हिंदी-उर्दू के प्रख्यात कथाकार मुशर्रफ आलम जौकी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पठित कहानियों में इनके लेखकों ने आजादी के बाद के हिंदुस्तान को देखने का साहस किया है. कार्यक्रम का संचालन करते हुए अकादमी के विशेष कार्याधिकारी डा. देवेंद्र कुमार देवेश ने अंत में औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया.