मुंबईः महाराष्ट्र के साहित्य, संस्कृति और कलाप्रेमी मासिक बैठकी करते हैं 'चौपाल' के नाम से. कथाकार गंगाशरण सिंह इस आयोजन से अभिभूत हो अपनी प्रतिक्रिया यों जाहिर करते हैं. 'चौपाल जैसी समृद्ध दर्शक दीर्घा और कहाँ होगी कि अचानक एक नाम पुकारा जाता है और श्रोताओं के बीच चुपचाप बैठकर कार्यक्रम का आनन्द लेता हुआ एक शख़्स उठकर मंच पर पहुँच जाता है. साहित्य, कला और संगीत जगत के अनेक हस्ताक्षर जिस शालीनता, विनम्रता और शान्ति से चार घंटे यहाँ बिताते हैं, वह अपने आप में एक मिसाल है. इस बार की थीम थोड़ी अलहदा सी थी. सुभाष काबरा और अशोक बिन्दल ने कुछ अलग करने की ठानी थी. पिछले कई दशकों से जिन चेहरों, जिन आवाज़ों को महज सूत्रधार की भूमिका में देख रहे थे, वे सब अपने जीवन के उन नायाब संस्मरणों से नवाज़ रहे थे हमें, जो अब तक उनकी स्मृतियों में ही दबे पड़े थे. अतुल तिवारी हमें आधी सदी पहले के लखनऊ और वहाँ के उस रेडियो स्टेशन तक ले गए जहाँ से उनका सूत्र संचालन उस दौर में ही शुरू हो चला था जब वे किशोरावस्था तक भी नहीं पहुँच पाए थे. हरीश भिमानी के साथ तो बड़ी बड़ी स्मृतियाँ जुड़ी हैं. एक तरफ़ महाभारत का कालजयी उद्घोष- "मैं समय हूँ" तो दूसरी तरफ़ देश के शीर्षस्थ गायकों के साथ लगभग तीस वर्षों तक संचालन की यादें. उन्होंने वक़्त ज़्यादा लिया किन्तु रोचकता बनाये रखी.
"सुभाष काबरा ने अपने मन की सारी बातें एक व्यंग्य कविता के माध्यम से कह दीं. आवाज़ के एक और बड़े जादूगर विष्णु शर्मा मंच पर आए तो ढेर सारी यादगार स्मृतियों के साथ ही एक और राज खुला महाभारत के समय का, जब ये कशमकश चल रही थी कि महाभारत के लिए सूत्रधार किसे बनाया जाय. कौरव पाण्डव दल के किसी सदस्य पर राय बहुमत की तरफ़ नहीं जा रही थी ऐसे में माँ से सुने एक संवाद ने विष्णु शर्मा के मस्तिष्क पर दस्तक दी और उन्होंने अविलम्ब पंडित नरेन्द्र शर्मा को फ़ोन कर सूचित किया कि उन्हें सूत्रधार के लिए उपयुक्त पात्र मिल गया है. उसके बाद जो कुछ हुआ वह इतिहास है. इला जोशी को बहुत दिन बाद कविताओं से इतर कुछ और सुनाते देखा और ईमानदारी की बात ये है कि उनकी कविताओं में जो लुत्फ़ कभी नहीं मिला था वह उनके संस्मरण में मिला. ऑस्ट्रेलिया से आयी शैलजा के संस्मरण मिली जुली खिचड़ी भाषा और इस विधा में उनकी अनुभवहीनता के कारण कुछ विशेष नहीं छू सके. ये अवश्य मालूम पड़ा कि गुलज़ार साहब पर वे कार्य कर रही हैं और बहुत जल्द उनकी किताब आएगी. इंदौर और विविध भारती के नवाब यूनुस खान पूरे जलवे के साथ मंच पर मौजूद हुए. उनके कई मार्मिक संस्मरण ऐसे थे जो उदास कर गए. परम्परानुरूप कार्यक्रम का समापन संगीत से हुआ. महिला और पुरुष दोनों आवाज़ों में उतनी ही सहजता से गाने वाले साईंराम अय्यर ने मन मोह लिया."