नई दिल्लीः साहित्य और मीडिया के बीच दूरी ज़रूर बढ़ी है, लेकिन दोनों का महत्त्व कम नहीं हुआ. एक समय में साहित्यकार पत्रकारिता की तरफ उन्मुख हुए लेकिन जैसे-जैसे पत्रकारिता बाज़ारवाद के प्रभाव में आती गई, उसके साहित्यिक सरोकार सीमित होते गए. यह कहना है वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र राव का, वे साहित्य अकादेमी के वार्षिक आयोजन 'साहित्योत्सव 2022' में 'मीडिया और साहित्य' विषय पर आयोजित परिचर्चा के उद्घाटन सत्र में बतौर विशिष्ट अतिथि बोल रहे थे. आगे उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के कारण अब आम आदमी भी पत्रकार की भूमिका में है और अपने आस-पास जरा भी कुछ ग़लत होते देख तुरंत सक्रिय हो जाता है. उद्घाटन वक्तव्य देते हुए आकाशवाणी के महानिदेशक एन वेणुधर रेड्डी ने कहा कि साहित्य और मीडिया एक ही सिक्के दो पहलू हैं. युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति रुचि पैदा करने के लिए आकाशवाणी विशेष तौर पर प्रयास कर रही है. उन्होंने नई तकनीक के संतुलित प्रयोग को उचित ठहराया.

अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रख्यात मराठी लेखक विश्वास पाटिल ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता की पुरानी परंपरा अब खत्म हो चुकी है. साथ ही, संपादक जो अपने आप में एक संस्था की हैसियत रखते थे, अपना वजूद खो चुके हैं. आगे उन्होंने कहा कि कोरोना काल से एक बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि लोग अखबार के बिना रह सकते हैं, साहित्य के बिना नहीं. समापन वक्तव्य में साहित्य अकादेमी के उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने कहा कि शहरी पत्रकारिता विशेषतौर पर साहित्य से विमुख हुई है, लेकिन क्षेत्रीय पत्रकारिता में अभी भी उम्मीद की किरण बची है. 

संवाद सत्र की अध्यक्षता आलोक मेहता ने की, जिसमें क्षमा शर्मा, मधुकर उपाध्याय, मधुसूदन आनंद, प्रताप सोमवंशी, सरजू काटकर, सईद अंसारी एवं एसआर विजयशंकर ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए.भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर साहित्य का प्रभाव विषयक संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता सुमन्यु शतपथी ने की तथा सचिन सी. केतकर, ओम द्विवेदी तथा सायंतन दासगुप्त ने आलेख प्रस्तुत किए. संगोष्ठी का पंचम सत्र 'स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारिता की भूमिका' विषय पर था, जिसकी अध्यक्षता बल्देव भाई शर्मा ने की तथा मालन वी नारायणन, अनंत विजय तथा मधु आचार्य 'आशावादी' ने आलेख प्रस्तुत किए. छठा सत्र 'भारतीय कथा साहित्य में स्वतंत्रता की तड़प' विषय पर था जिसमें बी. तिरुपति राय, दर्शना धोळकिया तथा गौरहरि दास ने आलेख-पाठ प्रस्तुत किए. सप्तम सत्र 'लोक साहित्य और स्वतंत्रता आंदोलन' विषय पर था जिसकी अध्यक्षता सितांशु यशश्चंद्र ने की तथा प्रदीप ज्योति महंत तथा फ़ारूक़ फ़याज़ ने अपने आलेख-पाठ प्रस्तुत किए.